संजीव आज अट्ठाईस वर्ष सरकारी नौकरी करने के बाद रिटायर हो गया था| इसी उपलक्ष्य में उसके घर में एक भव्य उत्सव का प्रबंध किया गया था| संजीव के भाई-बहन, भाभियां, बच्चे तथा अन्य रिश्तेदार, डीजे की धुनों पर थिरक रहे थे| अचानक वहां पर संजीव की अस्सी वर्षीय माताश्री आ पहुंची| सभी रिश्तेदार उन्हें देखकर अति प्रसन्न हुए तथा झूमते हुए माता जी को भी नाचने का आग्रह करने लगे| माताजी ने पहले तो थोड़ी आनाकानी की, मगर फिर युवा पीड़ी का दिल रखने के लिए जैसे-तैसे नाचने लगी| रिश्तेदारों का मन हुआ कि नाचते हुए माता जी के साथ एक यादगार तस्वीर खिंचवा कर अमर हो जाएं|

चूँकि अच्छी फोटो के लिए स्थिर होना आवश्यक है, अत: इस तस्वीर हेतु सभी ने अपना-अपना मोर्चा संभाल लिया| कुछ माता जी के पीछे खड़े हो गए, तो कुछ ने माता जी की अगल-बगल में स्थान पा लिया| किसी ने डांस की मुद्रा में हाथ ऊपर उठा लिए तो किसी ने नीचे कर लिए| किसी ने अपने मुरझाए हुए चेहरे पर गज़ब की मुस्कुराहट लाई तो किसी ने माता जी के चरणों में बैठकर अनन्य मातृ-भक्त दिखने की कोशिश की|
मगर माताजी इन सब दांव-पेचों से अनजान, लगातार नाच रही थी| रिश्तेदारों के लाख समझाने पर भी वह स्थिर होकर कोई नाचने वाला पोज़ नहीं दे पा रही थी| वह तो बस बेटे के प्रेम में नाच रही थी, जैसे जंगल में मोर नाचता है, केवल अपनी खुशी के लिए, फोटो या किसी को दिखाने के लिए नहीं| यद्यपि माताजी का शरीर उनका साथ नहीं दे रहा था, मगर वो फिर भी नाच रही थी| अंतत: हारकर फोटोग्राफर ने माता जी की वीडियो तो बना दिया, मगर रिश्तेदारों के फेस बुक पेज के लिए माता जी के साथ नाचते हुए मनचाही फोटो नहीं खींच सका|