
माता सीता जो कि महान विदुषी गार्गी वाचवनवी (समस्त वेदों व कलाओं की परांगत) की शिष्या थी। इनके कुलगुर अहिल्या व गौतम के पुत्र शाता नंद जी थे। इनका जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मिथिला के राजा जनक के यहां हुआ बताया जाता है। मिथिला की राजकुमारी होने के नाते ही इन्हें मैथिली के नाम से भी जाना जाता था।इनकी उत्पति पृथ्वी से होने के कारण ही इन्हें भूमि पुत्री व भू सुत भी कहा जाता है।
माता सीता से संबंधित कई एक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिनसे इनके एक आदर्श पत्नी के रूप में पतिव्रता होने,पति के वन में रह कर सादा जीवन यापन करने के परिणाम स्वरूप ही इन्हें साहसी,निर्भीक,सहनशील व धर्म कर्म के प्रति निष्ठावान महिला के रूप में जानते हैं।माता सीता में वे सभी 12 गुण विद्यमान थे जो कि एक श्रेष्ठ नारी में देखे जाते हैं।अर्थात इनमें सादगी के साथ सुंदरता,सहनशीलता,सत्य वचन, धर्म पालन, छल कपट से हमेशा दूर रहना,दृढ़ता से पतिव्रता धर्म निभाना,कार्य कुशलता के साथ सभी के साथ मधुर व्यवहार रखना आदि सभी गुण विमान थे।
एक पौराणिक कथा में माता सीता को वेदवती का ही पुनर्जन्म बताया गया है ।वेदवती ब्रह्मऋषि कुशध्यज की पुत्री थी।पिता कुशध्यज जो कि खुद अच्छे वेदों के विद्वान व उनका अध्ययन करते रहते थे,वेदों और शास्त्रों के प्रति इतना लगाव होने के कारण ही उन्होंने अपनी सुन्दर बेटी का नाम वेदवती रख दिया था।वह अपनी बेटी की शादी देव विष्णु से करवाना चाहते थे।सुन्दर रंग रूप होने के कारण ही उनके यहां बेटी के लिए कई एक अच्छे अच्छे राजाओं के रिश्ते आए और उन्होंने उन्हें ठुकरा दिया था। बदले में अपना अपमान समझ कर किसी राजा ने कुशध्वज का ही वध कर दिया। अब बेटी वेदवती आश्रम में अकेले ही देव विष्णु की याद खोई खोई सी रहने लगी थी।देव विष्णु की चाहत में ही उसने कठोर तप करना भी शुरू कर दिया था।
एक दिन असुर रावण ने उसे अकेले तप करते देख कर उसकी सुंदरता पर ऐसा मोहित हो गया और उसे अपने से विवाह करने को कहने लगा। जब वेदवती नहीं मानी तो रावण ने उसके साथ जबरदस्ती करनी शुरू कर दी।तब क्रोधित हो कर वेदवती ने रावण को शाप दे डाला कि वहीं (वेदवती )उसकी मृत्यु का कारण बने गी।उसके पश्चात वेदवती खुद ही अग्नि में कूद कर भस्म हो गई।इस तरह उसकी तपस्या भी भंग हो गई और देव विष्णु को भी नहीं पा सकी ।लेकिन ऐसा भी कथा से पता चलता है कि तपस्या के मध्य ही एक बार वेदवती की मुलाकात देवी पार्वती से हुई थी और उन्होंने वेदवती को वरदान देते हुवे कहा था , ” त्रेता युग में देव विष्णु जब राम अवतार लगे तो तुम्हारी इच्छा की पूर्ति होगी।”
फिर वैसा ही हुआ जब वेदवती सीता के रूप में अवतरित हुई तो देव विष्णु भगवान राम के रूप में अवतरित हो कर सीता को स्वयंबर से (विवाह कर )ले आए थे। वैसे भी देवी सीता को लक्ष्मी का रूप ही माना जाता है। ऐसी ही एक अन्य कथा में माता सीता को राक्षस रावण की बेटी बताया गया है।कथा के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी द्वारा रक्त पान करने पर उसके यहां सीता नाम की बेटी ने जन्म लिया था।पर रावण को इसकी कोई खुशी नहीं हुई ,क्योंकि उसे वेदवती द्वारा दिया गया शाप याद था , उसने शाप से बेचने के लिए ही बेटी सीता को समुद्र में फेक दिया।समुद्र ने आगे बेटी सीता को पृथ्वी के सपुर्द कर दिया।पृथ्वी से कैसे बेटी आगे पहुंचती है ! और मिथिला की राजकुमारी बनती है ! यही, हमारी पौराणिक कहानियां आगे स्पष्ट करती चली जाती हैं।
उधर मिथिला में भारी अकाल के कारण लोग भूख से तड़प रहे थे।राजा जनक को किसी ऋषि ने हल चलने की सलाह दी ताकि अच्छी पैदावार हो सके ।राजा जनक जब हल चलाने लगे तो उनका हल का अगला भाग (सीत )जमीन में किसी मिट्टी के बर्तन (पात्र ) में जा फंसा,पात्र को निकाल कर खोलने पर उसमें ,एक सुन्दर बच्ची पड़ी दिखाई दी।राजा जनक के अपनी कोई संतान नहीं थी ,इस लिए उन्होंने बच्ची को परमात्मा का अनमोल उपहार मान कर उसे अपनी बच्ची के रूप में स्वीकार करके उसे सीता नाम दे दिया। जिस दिन माता सीता का धरती से अवतरण हुआ वह दिन वैशाख मास का शुक्ल पक्ष का नौवां दिन था।
इसी लिए इस दिन को माता सीता की जयंती के रूप में मनाया जाता है और सीता नवमी के नाम से जाना जाता है और इस दिन के महत्व के अनुसार ही प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत हो कर व्रत रखा जाता है।पूजन के लिए ,पूजन स्थल की अच्छी तरह से साफ सफाई करके वहां एक पटड़े पर स्वच्छ वस्त्र बिछा कर उस पर माता सीता व भगवान राम का चित्र या मूर्ति रखते हैं।पूजा के लिए फूल ,फल ,तिल व चावल आदि रख कर देसी घी का दिया जाला कर पूजा की जाती है।देवी सीता माता व भगवान राम की पूजा अर्चना के ही साथ पृथ्वी ,राजा जनक व उनकी रानी सुनयना की भी पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा बताया जाता है कि व्रत व पूजा अर्चना से कई तरह के तीर्थों के भ्रमण व 16 प्रकार के अन्य पुण्य प्राप्त होते हैं। घर में सुख शांति,पति की लम्बी आयु,व कई तरह के दान का पुण्य प्राप्त होता है।क्योंकि माता सीता को लक्ष्मी प्रेषकका अवतार माना जाता है ,इसी लिए इस दिन के पूजा पाठ से धन संपति के साथ संतान आदि की भी प्राप्ति होती है।