14 अप्रैल 2024 को मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी का सोलन के धर्मपुर स्थित ‘रौड़ी’ गाँव में सफल मंचन हुआ। इसे अभिव्यक्ति की सचिव सुश्री अमला राय ने निर्देशित किया। बड़े भाईसाहब एक बहुत ही प्यारी कहानी है, जो न सिर्फ उस समय के लिए सार्थक थी जब ये 1910 में लिखी गई, बल्कि आज भी उतनी ही सार्थक है। तब जो शिक्षा प्रणाली का हाल था और समाज का शिक्षा के प्रति जो रवैया था, वह 114 साल बाद भी वैसे ही हैं। प्रेमचंद के शब्द – “रटंत का नाम शिक्षा रख छोड़ा है”, आज भी उतने ही सटीक हैं, जितने तब थे।

ये कहानी दो भाइयों की है। बड़ा भाई एक किताबी कीड़ा है जो जी-जान से पढ़ाई करता है, लेकिन हर दर्जे में 2 से 3 साल लगाता है। वहीं छोटा भाई का ध्यान खेल-कूद में ज़्यादा रहता है, पढ़ाई में कम। फिर भी वह दर्जे में अव्वल आता है। बड़े भाई की खिसियाहट बढ़ती चली जाती है जिसे वह छोटे भाई पर हर वक़्त  निकालते रहते हैं। उसे तरह-तरह के ताने देते हैं, ज्ञान के नाम पर शिक्षा का भयानक चित्र प्रस्तुत करते हैं। अपने मन पर बहुत काबू रखते हैं। उन्हें किसी भी मनोरंजक गतिविधियों में भाग लेना समय और पैसे की बर्बादी लगता है और गैर ज़िम्मेदाराना व्यवहार। फिर एक क्षण ऐसा आता है, जब वह अपने को रोक नहीं पाते और एक पतंग लूटने के लिए उसके पीछे भाग लेते हैं।

नाटक का निर्देशन काफी सटीक रहा। अभिनेताओं ने अपने अभिनय के ज़रिए आज की शिक्षा प्रणाली पर बखूबी कटाक्ष किया। खास बात ये रही कि पार्श्व संगीत और विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ कलाकारों ने अपने मुंह से ही निकली या फिर लकड़ी-पत्थर का इस्तेमाल करके – चाहे वो भोर को दर्शाता संगीत हो या स्वपन लोक की परिकल्पना। बड़े भाईसाहब की भूमिका में हरीश ने शक्तिशाली अभिनय का परिचय दिया और अपने चरित्र की मजबूरीयों और मर्म को सफलता से प्रेषित किया। छोटे भाई की भूमिका में सूरज ने अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों की ख़ूब सराहना बटोरी। हाथ न होते हुए भी उन्होंने ये नहीं लगने दिया कि उन्मे कोई कमी है, बल्कि सेट भी उन्हीं ने ही हटाया। भावना, माही और सौरभ ने नाटक के प्रथम दृश्य में ही अपने चुलबुलेपन से ऊर्जा पैदा कर दी।

इस नाटक को देखने सिर्फ धर्मपुर से दर्शक ही नहीं, बल्कि शिमला, सोलन, कसौली और चंडीगढ़ से भी नाटक प्रेमी पहुंचे और सब ने कलाकारों के अभिनय और प्रयासों को भरपूर सराहा। मुख्य अतिथि राजेश शर्मा, IFS, राज्य परियोजना, समग्र शिक्षा, हि. प्र. ने प्रस्तुति की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए शिक्षा प्रणाली में सुधार पर ज़ोर दिया और ये उम्मीद जताई कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिए शिक्षा बेहतर हो पाएगी।

शिमला के वरिष्ठ रंगमंच निर्देशक प्रवीण चाँदला प्रस्तुति से बहुत प्रभावित हुए और कहा कि, “रंगमंच की मूलभूत सुविधाएँ न होने पर भी प्रस्तुति ने कहानी के मर्म को प्रभावशाली ढंग से प्रेषित किया”। शिमला के ही दूसरे वरिष्ठ रंग कलाकार जवाहर कौल ने इस बात की बहुत प्रशंसा की कि अमला राय और सुनील सिन्हा एक गाँव में लगातार रंगमंच कर रहे हैं। उन्होंने उभरते अभिनेताओं को अभिनय के कुछ हुनर भी सिखाए।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘रौड़ी’ का मंचन: रंगमंच कलाकारों के अभिनय की सराहना और अनुभव

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