“अभिव्यक्ति” द्वारा बाल नाटक “जंगल जातकम्” का मंचन गाँव रौड़ी, धर्मपुर, सुबाथू रोड, ज़िला सोलन में 3 व 4 सितंबर प्रातः 11:30 बजे गांव के बच्चों द्वारा किया जा रहा है। यह नाटक 30 दिन चली बाल रंग शिविर के दौरान तैयार किया गया और शिविर के समापन समारोह में इसको मंचित किया जा रहा है । भाषा एवं संस्कृत विभाग, हि. प्र. के सौजन्य से आयोजित, इस शिविर तथा प्रस्तुति के मुख्य अतिथि डा. राकेश कँवर (भा. प्र. से.) होंगे जो कि भाषा एवं संस्कृति विभाग और कृषि विभाग, (हि. प्र.) के सचिव हैं ।
यह नाटक डा. काशीनाथ सिंह जी की कहानी पर अधारित है। कहानी का रूपांतर अच्छर सिंह परमार ने किया है। जिसका निर्देशन राजिंद्र शर्मा (हैप्पी) द्वारा किया गया है। नाटक का संगीत सुनील सिन्हा ने किया है। नाटक एक “स” जंगल की कहानी है जो की हमारे आसपास का जंगल है । मनुष्य की विकृत इच्छाएं और उसका लालच जो उसी का विध्वंश कर रहा है – उसको लेकर कटाक्ष है।

जंगल आज भी मनुष्य का पालन पोषण करता है। जंगल की अपनी दुनिया है, अपना परिवार है, वह मनुष्य को आज भी अपना मित्र ही समझता है। लेकीन मनुष्य ने ऐसा विकराल रूप ले लिया है की उसका विकृत शरीर “घमोच” होगया है जिसके आगे वो बोना होगया है । विकृत घमोच मनुष्य की क्षुद्रता और दुर्बलता का प्रतीक है वो उसको गुलाम बन कर खींच रहा है। ये बहुत दुखद है। बच्चों ने शक्तिशाली ढंग से आवाज़ एवं शरीर का प्रयोग करके जंगल के नाना प्रकार के कार्य कलापों को वहां घटित होने वाली घटनाओं का मंचन किया। जहां जंगल खुश था आनंद में था लेकीन मनुष्य की ना ख़त्म होने वाली प्रगति ने उसको बहुत दम्भी बना दिया है। अपना अंत करने का सारा सामान जुटा लिया है। इस दर्द को बच्चों ने अपने मुख भावों और अभिनय से संप्रषित करने का प्रयास किया है। बच्चों ने हमारा सच, हमारी नकली दुनिया को मुखरता से परोसा और ये आह्वान किया है कि अगर आज हम सजग नहीं होंगे तो हमारा अंत निश्चित ही है। “अभिव्यक्ति” संस्था की सचिव अमला राय गत एक वर्ष से गांव के बच्चों के साथ निरंतर सांस्कृतिक तथा रंगमंचीय गतिविधियां करने में तल्लीन हैं।

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