पगडंडियां
अहसास दिलाती हैं,
गांव का
कस्बे का और
संकरा वा छोटा होना,
अपने ही वाजूद का।
पगडंडियां
मिलाती हैं, करीब लाती हैं और
मंजिल तक पहुंचती हैं,
मिटा के सभी तरह की
दूरियां ।
पगडंडियां
कभी बनाई नहीं जाती,
आधार शिलाएं इसकी
रखी नहीं जाती,
कोई बजट प्रावधान
न ही कोई उद्घाटन
होता है इनका ।
पगडंडियां
न बनती हैं,
न ही सजती संवरती हैं
किसी वीo आईo पीo
के आने जाने पे।
हां बस बनी रहती हैं
जैसी की वैसी ही
सदा सब के लिए ।
पगडंडियां
एक उपज (परिणाम)हैं
समय, श्रम, दूरदर्शिता, विवेक
और ऊर्जा संचय की।
पगडंडियां
बनती है,
बढ़ते उठते कदमों से,
संकरा होना इनका
बचाता है, डगमगाने से
आपस में टकराने से।
पगडंडियां
रही हैं, हमेशा दूर
छल व कपट से,
अपनी संस्कृति और
कला रूपी विरासत को
बचाने (सजोने)के लिए ।