परशुराम ने अपनी माता का वध क्यों किया था?

हमारा पौराणिक साहित्य अंतहीन कथाओं से भरा पड़ा है। इन धार्मिक कथाओं का कोई अंत ही नहीं, लेकिन इस में वर्णित सभी कथा कहानियों का संबंध आगे से आगे दूसरी कथा कहानियों से जुड़ा मिलता है और यह श्रृंखला कड़ियों के रूप में आगे से आगे चलती रहती है। जैसे कि किसी के शाप या वरदान के बारे में जानकारी लेनी हो तो उसकी आगे अलग ही कथा सुनने को मिल जाती है कि उस शाप या वरदान के पीछे क्या रहस्य था, सिलसिला आगे से आगे चलता रहता है।

भगवान परशुराम की पौराणिक कथा को देखा जाए तो इसमें भी कई कथाओं के संबंध मिल जाते हैं। परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। इनकी जयंती हर वर्ष अक्षय तृतीय के दिन मनाई जाती है। इनके पिता का नाम ऋषि जमदग्नि था, जो कि भार्गव गोत्र के गौड़ ब्राह्मण जाति से संबंध रखतें थे। इनकी माता का नाम रेणुका था जो कि क्षत्रिय इक्ष्वाकु कुल के राजा रेणु (प्रसेनजित) की पुत्री थी। परशुराम अपने माता पिता के पांचवें पुत्र थे तथा अपने गुस्सीले स्वभाव के लिए विशेष जाने जाते थे। जब इनके पिता जमदग्नि की हत्या राजा कार्तवीर्य द्वारा की गई और उनके शरीर पर 21 घावों को देख कर परशुराम से नहीं रहा गया तथा अपने पिता के वध का बदला लेने के लिए ही इन्होंने 21 क्षत्रियों का वध कर डाला था। लेकिन इसके पश्चात इन्हें अपने ऊपर गुस्सा आने लगा और बड़े ही बेचैन रहने लगे थे। इसी लिए मानसिक शांति को प्राप्त करने के लिए परशुराम ऋषि कश्यप जी के पास पहुंच गए। ऋषि कश्यप ने इन्हें इसके लिए आगे भगवान दत्तात्रेय के पास भेज दिया, जहां पर भगवान परशुराम ने शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करके सांसारिक मोह माया का त्याग कर एक संन्यासी का जीवन अपना लिया था और योग, वेदों तथा नीति में भी पारंगत हो गए थे।

ऐसा भी बताया जाता है कि महाभारत के योद्धा भीष्म पितामहा, कर्ण व द्रोणाचार्य ने भी इन्हीं से शिक्षा ग्रहण की थी। भगवान शिव के परम भक्त होने के कारण ही परशुराम ने घोर तपस्या करके भगवान शिव से वरदान में परशु (फारसा) प्राप्त करके युद्ध के कई अन्य प्रकार के दाव पेंच भी सीखे थें। भगवान शिव ने परशुराम का युद्ध कौशल देखने के लिए इन्हें चुनौती भी दी थी और चुनौती का यह युद्ध दोनों में 21 दिन तक चलता रहा था। इसी युद्ध में भगवान शिव के त्रिशूल के वार से बचने के लिए परशुराम ने देव शिव पर हमला बोल कर उनके माथे पर घाव भी कर दिया था। लेकिन परशुराम से स्नेह के फलस्वरूप ही भगवान शिव ने अपना धनुष परशुराम को उपहार में दिया था। वही धनुष परशुराम ने सीता स्वयंवर के लिए राजा जनक को दिया था, जिसे भगवान राम ने तोड़ कर सीता से विवाह किया था और तब भी परशुराम बहुत आग बबूला हुवे थे।

परशुराम से ही एक अन्य कथा और भी जुड़ी है जिस के अनुसार एक बार भगवान शिव से मिलने के लिए परशुराम हिमालय की ओर जा रहे थे कि रास्ते में इनका सामना देव गणेश से हो गया और गणेश ने इन्हें आगे  जाने से रोका तो वे वहीं गणेश से भिड़ गए और आवेश में आकर अपने फारसे से गणेश का एक दांत ही तोड़ डाला, तभी से देव गणेश एक दंत के नाम से जाने जाने लगे थे।

एक अन्य कथा के अनुसार जिसका वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है, से पता चलता है कि परशुराम ने अपनी माता रेणुका का गला क्यों काटा था। इस संबंध में बताया जाता है कि परशुराम की माता रेणुका एक बार राजा चित्ररथ को जल में स्नान करते देख कर कुछ विचलित हो गई थी, जिसका आभास परशुराम के पिता जमदग्नि को उसके (रेणुका के) हावभाव से हो गया था। और उन्होंने क्रोधित हो कर अपने चारों बड़े बेटों को रेणुका का वध करने के लिए कहा, लेकिन उनके ऐसा न करने पर जमदग्नि ने उन्हें शाप दे डाला और फिर परशुराम को मां का वध करने को कहा। परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन करके मां रेणुका का वध कर डाला। जमदग्नि बेटे परशुराम को, आज्ञा का पालन करते देख कर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे वर मांगने को कहा। तब परशुराम ने अपने पिता से तीन वर मांगे, जिनमें प्रथम मां को पुनर्जीवित करना, दूसरा चारों भाइयों को दिए शाप को वापिस लेना व तीसरे वर में परशुराम ने अपने लिए कहीं भी पराजय का सामना न करना पड़े का वर मांग लिया। इस तरह इस कथा से पता चलता है कि परशुराम असुलों का पक्का आज्ञाकारी बेटा ही नहीं था बल्कि अपने परिवार और माता पिता के प्रति कितना स्नेह रखता था इसका भी पता चलता है। इन्हीं सभी बातों के साथ ही साथ वह गुस्सैल होते हुए भी वचन का पक्का था।


परशुराम की इसी कथा से कई दूसरी कथाओं के संबंध जुड़े भी देखे जा सकते हैं, जैसे कि परशुराम की छठे अवतार की कथा, परशुराम के पिता (जमदग्नि) का राजा कार्तवीर्य द्वारा वध क्यों हुवा की कथा, परशुराम के सन्यासी हो जाने की कथा व देव गणेश की एक दंत कथा आदि से बात स्पष्ट हो जाती है कि पौराणिक कथाओं की कड़ियां आगे से आगे जुड़ी आम देखी जा सकती हैं। इस बार परशुराम जयंती शुक्रवार के दिन 10 मई को मनाई जा रही है।

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