रात
रात रोई है
रात भर !
कुछ सहमी सहमी,
डरी डरी,
कुछ ठंडी ठंडी और
कुछ भीगी भीगी सी,
साक्षी भौंर पुकार उठी !
बूंद बूंद ये मोती,
कलियों पे हरियाली पे
फूलों से झुकी हर डाली पे,
पौ फटने से पूर्व
ये चमक रहे हैं अश्रु किसके ?
ये रंगबिरंगे मोती !
मैं उठा चुपके से,
चुपके चुपके निकल पड़ा
उषा के उदय से पूर्व,
नजरें पड़ी जिधर थीं मेरी
(छिपते छुपाते देखा मैंने),
उसका आंचल सरक चुका था,
वह मुस्कुरा रही थी लेकिन
मैने चुपके से देखा
अरे अरे ये अश्रु किसके !
ये रंगबिरंगे मोती !
है ये विरहा की उदासी !
या ये मोती हैं खुशी के !
नहीं नहीं,
रात
रात रोई है
रात भर !