डॉ. कमल के. प्यासा
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मानवतावादी शब्द मानव से जुड़ा एक संयुक्त शब्द है। अर्थात ऐसा व्यक्ति जो कि मानव के हर दुख दर्द को जनता हो, अनुभव करता हो, मानवता का साथ देता हो, मानव के अधिकारों को दिलाने का प्रयास करता हो और बिना किसी भेद के यथार्थवादी हो, वही व्यक्ति मानवतावादी कहला सकता है। इस प्रकार मानवता का साथ देना, मानव अधिकारों को दिलाने का प्रयास करना, जरूरतमंद लोगों की सहायता करना आदि यही मानवतावाद के सोचने व जीने का सही तरीका है।
हां, तो ये मानवतावाद विश्व दिवस की आवाज कहां से और कैसे उठी? बात 19 अगस्त 2003 की है, जिस समय इराक की राजधानी बगदाद में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर बम के धमाकों के साथ हमला बोल दिया गया था। इसी हमले में 22 मानवीय सहायता कर्मी मारे गए थे। मरने वाले इन 22 सहायता कर्मियों में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव के विशेष प्रतिनिधि सर्जियो विएरा डिमेलो भी शामिल थे। इसी घटना को ध्यान में रखते हुए, 5 वर्ष पश्चात संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 19 अगस्त 2008 को विश्व मानवतावादी दिवस (WHD) मनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया था। तभी से इस दिवस को हर साल उन लोगों की याद में मनाया जाने लगा, जिन्होंने विश्व स्तर पर मानवतावादी संकट के समय अपनी जान गवां कर प्राणों की आहुति दे डाली थी।
2008 की बगदाद त्रासदी के पश्चात अब तक 4000 से अधिक मानवतावादियों को निशाना बनाया जा चुका है और आतंक अभी भी जारी है। संयुक्त राष्ट्र की 2022 की रिपोर्ट को देखने से पता चलता है कि अफगानिस्तान, मध्य अफ्रीका गणराज्य, कांगों लोकतंत्र गणराज्य, इराक, सोमालिया और यमन में 26000 से भी अधिक नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया गया था या घायल कर दिए थे।
आज विश्व भर में फैली अशांति की ओर देखने से पता चलता है कि लाखों की संख्या में लोग विस्थापित हो चुके हैं और हो रहे हैं, अभी अभी बांग्लादेश में तख्ता पलटने से फैली अशांति के फलस्वरूप भड़की हिंसा में न जाने कितने ही मानवतावादी व नागरिक अपनी जान की आहुति दे चुके हैं और न जाने कितने और मार दिए जाएंगे? करूरता की हद तो आज इतनी बड़ गई है कि बच्चों को भी नहीं बक्शा जा रहा और उन्हें अपने स्वार्थ के लिए सशस्त्र समूह (सेना) में भर्ती करके युद्ध तक में झोंक दिया जा रहा है।
इसी तरह से महिलाओं का उत्पीड़न और अपमान किया जाता है। यदि कोई इसका विरोध करता है या इनका साथ देता है तो उसे ही बड़ी निर्दयता से उड़ा दिया जाता है। आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि अभी 2022 में ही 444 मानवतावादियों पर हुए हमलों में 116 मारे गए, 143 घायल हुए और 183 का अपहरण कर लिया गया था।
आज विश्व भर में मानवतावादी सरकारी और गैर सरकारी (NGO) संस्थाओं के साथ ही साथ, मानवतावादी भी बेखौफ अपने कार्य को अंजाम दे रहे हैं। समस्त विश्व भी आज प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हुए पर्यावरण व मौसम परिवर्तन के साथ भुखमरी, अकाल, आगजनी, बाढ़, आंधी तूफान, भूकंप, ज्वाला मुखी विस्फोट, युद्धों, घातक बीमारियों व अन्य अनेकों प्रकार की दुर्घटनाओं को झेल रहा है। आज भी हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड इन्हीं मुसीबतों से जूझ रहे हैं। फिर भी हमारे मानवतावादी इन सभी मुसीबतों का डट कर सामना कर रहे हैं।
मानवतावादी विचार धारा व सभी मानवतावादियों को हमारा शत शत नमन।