जमीनी हकीकत — लघुकथा

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भीम सिंह, गांव देहरा, डाकखाना हटवाड़, उप-तहसील भराड़ी, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।

राकेश की मां बीमार थी । परिवार बहुत बुरी आर्थिक तंगी से गुजर रहा था । राकेश की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें । जब वह पढ़ता था और अच्छे नंबरों से पास होता था तो सोचता था कि जब वह पढ़-लिखकर बाहर निकलेगा तो उसे कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी । परंतु उस वक्त उसे जमीनी हकीकत का पता नहीं था । यह पता तो उसे अब लग रहा है । आज वह कितनी जगह नौकरी के लिए आवेदन कर चुका है । कितनी जगह साक्षात्कार दे चुका है । परंतु उसके पास योग्यता होने के बावजूद भी उसे आज तक नौकरी नहीं मिली है ।

जहां भी उसे ऐसा लगा कि यहां उसका काम बन जाएगा । वहीं कोई जान-पहचान रखने वाला उसका हक छीन गया । आज वह निराशा के घोर अंधकार में जी रहा है और अपनी हिम्मत हारने लगा है ।वह आज इस बात को भली-भांति समझ चुका है कि इस जमाने में योग्यता इतना काम नहीं करती जितनी कि रिश्वत और जान पहचान काम करती है । यही आज के जमाने की जमीनी हकीकत है । सरकारें दावा तो बहुत करती हैं कि वे कहीं भी गलत नहीं होने देंगी । हर जगह पारदर्शिता से काम करेंगी । भ्रष्टाचार और रिश्वत पर अंकुश लगाएगी ।

मगर यह सब कहां रुकता है । यह सब कल भी था, आज भी है, और आगे भी रहेगा । इसमें सबसे ज्यादा वह व्यक्ति, वह नौजवान पिसता है जो इमानदारी पर चलता है । आज हेरा-फेरी कहां नहीं हो रही है । अधिकतर लोगों की मानसिकता यही रहती है कि पैसा आए, चाहे वह किसी भी तरीके से आए । नौकरी मिले, चाहे कोई भी रास्ता अपनाना पड़े । जब इंसान की सोच ऐसी होगी तो फिर ठीक कहां होगा । आज कंपनियों में नौकरी करने अगर कोई नौजवान जाता है तो वे भी मजबूरी का पूरा फायदा उठाते हैं । उसे उतना वेतन नहीं देते जितने का कि वह हकदार होता है । इसलिए यहां भी उसका खूब शोषण होता है ।

यहां सवाल उठता है कि आज बेरोजगार करे तो क्या करे ? राकेश काफी देर तक इन्हीं विचारों में खोया रहा । फिर उठा और अपनी बीमार मां का हाल-चाल जानने उसके कमरे में चला गया ।

Daily News Bulletin

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Keekli Bureau
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