मूल लेखक: प्रो. रणजोध सिंह
अनुवादक : जीवन धीमान, नालागढ़

दो जवान मित्र अपणे मोटर साइक्ला पर बैठी कने हवा ची गलां करने लगी रे थे| किती जाणा था ? ……. पर नीं …. इहाँ ही निकली रे थे …… क्या पता मौज मस्ती करने जो …. जवानिया ची होश किती हुआं? ……. सिर्फ जोश हुआं, तेजी हुईं कने सारे संसारा ते अगे बदणे री चाह | सडका पर हजारां गडीयां चली री थी, कुछ तेज तां कुछ मजे-मजे ने, कई छोटीयां तां कई बडीयां| मतलब जिंदगी बराबर जेई रफतारा ने चली री थी | एकदम जोरा रा धमाका हुया, कने तिनां मित्रां री मोटर- साइक्ला ईकी जोरा रिया रफ्तारा ने चली री कारा ने बजीगी |

मिंटा ची तिनां री मोटर- साइक्ला रे टुकड़े-टुकड़े हुई गे | तैली तिका लोक तिनां तक पुज्दे, दुईं रे प्राण निकली गई रे थे| कारा बाला भीड़ देखी नी चुपचाप नठी गया| चऊँ खा हला पेई गया, कने देखदे-देखदे सडका पर लम्बा ट्राफिक जाम लगी गया, जिहां जिंदगी रुकीगी| सडका पर लोकां री भीड़ बदणे लगी री थी| लोक तिनां रीया डैड-बौडीया देखी ने द्या करने लगी रे थे|


कई बोलणे लगी रे थे, “बचारे बिना मौती ते मरीगे|” तां कई बोलणे लगी रे थे “हे भगवान! ईनां रे मौ-बुडेयां रा कयोंगा?” कईंये बोल्या “हल्ली ईने जिंदगीया ची क्या देखीरा था|” तां कईंये बोल्या “अहाँ जो ईना रे घरा बालेयां जो दसणे चाईं दा|”तैली तीथी पुलसा री गडी साईरन बजांदी पुजी गई | तिने सबी ते पैले दोनों डेड-बौडीयां सडका रे कनारे खा रखी ती, कने एक्सीडेंटा वाली गडीयां भी | ट्राफिक खुली गया कने जिंदगी पैले साई तेज रफ्तारा ने चलणे लगी गी |

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