हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार भले ही प्रदेश में व्यवस्था परिवर्तन का दावा कर रही हो, लेकिन चंबा जिले के सुदूर जनजातीय क्षेत्र पांगी की हकीकत इन दावों को आईना दिखा रही है। यहां आज भी लोग अपनी जान दांव पर लगाकर सफर करने को मजबूर हैं। एचआरटीसी की बसों की ऐसी हालत है कि यात्री सीटों पर नहीं, बल्कि एक-दूसरे के ऊपर चढ़कर यात्रा कर रहे हैं, मानो बस में इंसान नहीं बल्कि भेड़-बकरियां ठूंस दी गई हों।
किलेड़ से करयूनी जैसे मात्र 15 किलोमीटर के छोटे रूट पर भी परिवहन निगम दूसरी बस नहीं लगा पा रहा है। जो कुछ बसें चल रही हैं, वे कबाड़ में बदल चुकी हैं। इन जर्जर वाहनों के खतरनाक पहाड़ी मोड़ों पर किसी भी समय खराब हो जाने का खतरा बना रहता है, जिससे लोगों की जान हर पल जोखिम में है।
सरकार ने 40 प्रतिशत सब्सिडी के साथ प्राइवेट बस परमिट जारी करने की घोषणा तो जरूर की, लेकिन पांगी की दयनीय सड़कें और खतरनाक मोड़ इस योजना की सबसे बड़ी बाधा बन गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि इन ‘मौत के कुएं’ जैसी सड़कों पर कोई भी निजी वाहन मालिक अपनी गाड़ी उतारने को तैयार ही नहीं होता। नतीजतन योजना कागजों से आगे नहीं बढ़ पाई।
पांगी के लोग सरकार और नेताओं की अनदेखी से बेहद नाराज हैं। उनका कहना है कि एक समय था जब दिवंगत राजा वीरभद्र सिंह पांगी को अपना दूसरा घर मानकर यहां विकास कार्य करवाते थे, लेकिन उनके बाद चाहे कांग्रेस हो या भाजपा—सबने पांगी को भुला दिया। स्थानीय लोगों का आरोप है कि आज के नेता सिर्फ गर्मियों में ठंडी हवा खाने आते हैं और जनता का दर्द सुनने की कोशिश भी नहीं करते।
किलाड़–करयूनी रूट की वर्तमान स्थिति राज्य की परिवहन व्यवस्था पर बड़ा सवाल उठाती है। डिपो में बसों की भारी कमी है और जो मौजूद हैं, वे भी खराब स्थिति में हैं। हजारों लोग रोजाना मौत का खतरा उठाकर सफर कर रहे हैं, जबकि प्रशासन की चुप्पी लोगों के गुस्से को और बढ़ा रही है।
स्थानीय जनता का सवाल साफ है—क्या सरकार किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रही है? और कब तक पांगी को इस सौतेले व्यवहार का सामना करना पड़ेगा?



