खेलता
कोई आग में
चिलचिलाती धूप और
बरसते पानी की बरसात में
मिट्टी धूल से
तो कहीं गंदगी कचरे
कूड़े कबाड़ के
ढेर से
बैठा निश्चित है
बेखबर कोई,
इन सारे भेदों के
खेल से !
कोई कहता किस्मत इसे
कर्म फल कहता कोई
समझ है ,अपनी अपनी
किसी का कोई दोष नहीं
बस थोड़ा विचारों का फेर है !