किसी क्षेत्र स्थान व देश का सांस्कृतिक पक्ष जानने के लिए ,वहां के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले तीज , त्यौहारों व मेलों की जानकारी होना जरूरी हो जाता है।इस आलेख में भारत में मनाए जाने वाले एक त्यौहार ,बैसाखी या वैसाखी या वैशाखी (यही नामअलग अलग प्रांतों में अलग अलग नामों से भी जाना जाता है) की चर्चा की जा रही है। आलेख से कुछ न कुछ हमारा सांस्कृतिक पक्ष तो गोचर हो ही जाए गा।
वैशाख माह में पड़ने वाला वैसाखी का यह त्यौहार मात्र उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि समस्त देश में 13 ,14 अप्रैल को भिन्न भिन्न नामों से मनाया जाता है। वैशाखी मनाए जाने के पीछे ,रबी की पक्की फसल (जिसमें तिलहन वाली ,गन्ना,गेहूं आदि प्रमुख फैसले होती हैं)के घर आने की खुशी रहती है। यह खुशी देश में सभी जगह अपने अपने ढंग से मेले व त्यौहार के रूप में देखने को मिल जाती है।
और यही त्यौहार वैशाखी की जगह अलग अलग नामों से जाना जाता है,जैसे कि हमारे हिमाचल व पड़ोसी राज्य जम्मू में बसोआ या बसोया,उतराखंड में बीखू या बिसौती,पंजाब हरियाणा में बिशाकी व वसाखी,बिहार में जुड़ शीतल,केरल में पुरामुद्दीन व बिशु,असम में बोहाग बिहू,तमिलनाडु में पुथंडू,बंगाल में पाहेला बेशाख,उड़ीसा में महा विष्णु सक्रांति तथा आंध्रा व कर्नाटका में उगदी कहा जाता है,लेकिन त्यौहार को मनाने के तौर तरीके सभी के अपने अपने ही हैं।
क्योंकि बैशाखी में ही सूर्य मीन राशि से प्रस्थान करके मेष राशि में प्रवेश करता है,जिससे सूर्य के स्थान में परिवर्तन आ जाने से मौसम में भी बदलाव आ जाता है और गर्मी बड़ जाती है।सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के कारण ही इस त्यौहार को मेष सक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। तभी तो इस दिन तीर्थ स्थानों,प्राकृतिक जल स्त्रोतों,झीलों,तालाबों व नदियों आदि में स्नान करने को पवित्र कहा गया है।
कई तीर्थ स्थानों पर तो मेलों का भी आयोजन किया जाता है और लोग स्नान करने के पश्चात् दान पुण्य करने को भी शुभ मानते हैं। मेलों में हरिद्वार,वाराणसी,हिमाचल में रिवालसर, तत्ता पानी आदि स्थानों में स्नान के पश्चात भरी दान पुण्य करते लोगों को देखा जा सकता है। मंडी का रिवलसर तो तीनों धर्मों की त्रिवेणी है क्योंकि यह स्थल तीनों धर्मों अर्थात हिंदू ,सिख व बौद्ध के लिए पवित्र हैओर वैशाखी मेंले में भी सभी शामिल होते हैं।
दूसरे वैशाखी के दिन ही बौद्ध गुरु का जन्म दिन भी बताया जाता है। इन सभी बातों के साथ ही साथ तीनों धर्मों के मंदिर ,गोंपा व गुरुद्वारा भी साथ साथ देखे जा सकते हैं। वैसे देखा जाए तो वैशाखी का यह त्यौहार मात्र हमारे देश भारत तक ही सीमित नहीं बल्कि पड़ोसी देश पाकिस्तान,बांग्लादेश,नेपाल, कनाडा,अमेरिका व यूके में भी खूब धूम धाम से वहां बसे भारतीयों द्वारा मनाया जाता है।
वैशाकी इस त्यौहार की पंजाब व हरियाणा में तो विशेष धूम रहती है ,क्योंकि वैशाखी वाले दिन ही तो सिखों के दशम गुरु गोविंद सिंह जी ने ,मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचारों और उसकी धर्म विरोधी नीति के विरुद्ध ही आनंद पुर साहिब में खालसा पंथ की नीव(30 मार्च ,1699 में) रखी थी तथा बिना किसी जाति भेद के देश पर कुर्बानी देने वाले पांच प्यारों का चयन किया था।आज जब भी कहीं नगर कीर्तन या कोई अन्य धार्मिक आयोजन होता है तो ये पांच प्यारे सबसे आगे रहते हैं।
वैशाखी में भी नगर कीर्तन के समय पांचों प्यारे आगे आगे चलते हैं,सारी संगत पीछे पीछे भजन कीर्तन,के साथ अस्त्र शस्त्रों का प्रदर्शन व खेलों का आयोजन भी रहता है और जगह जगह लंगर पानी का आयोजन भी किया जता है। खुशी की इसी बेला में विशेष नृत्य में भांगड़ा व गिद्दा भी देखने को मिल जाता है। देखा जाए तो वैशाखी का यह त्यौहार अनेकता में एकता की बड़ी मसाल है।