Dr Vidya Nidhi Chhabra, Keekli Special Report, 17th November, 2018, Shimla (Picture credits: Vanadeep)
खिली हुई धूप, शिमला के सैंट एडवर्ड्स स्कूल के हॉल की तरफ जाती सीढ़ियाँ। हर सीडी पर एक तस्वीर और उन्हें बनाने वाले चित्रकार बच्चे, चित्र ऐसे कि बड़े हैरान हो जाएँ। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे ज़िन्दगी को किस नज़र से देखते है, क्या सोचते हैं आज की दुनिया के बारे में? कैसे उतारते हैं अपनी संवेदनाओं की तूलिका से एक संवेदनहीन संसार की कठोर वास्तविकता?
गुरप्रीत सिंह, 7वी कक्षा में पढने वाला छात्र चित्र बनाता है, एक अनजान लड़की का चेहरा जिस पर सिर्फ रंग है, कोई नक्श नही। कहता है ऐबस्ट्रैक्ट (abstract) पेंटिंग है। पूछती हूँ इसका चेहरा क्यों नही है ? जवाब मिलता है आज लड़कियां जिस क्रूरता को झेल रही है, उसे दिखाया है ।
सच ।
उसके चेहरे पर रेखाएं नही, लेकिन वह भाव-विहीन चेहरा नही है । रंगों से भाव है। हिंसक समाज के, खून के, विद्रोह के । यह वह लड़की है जिसका अस्तित्व मिटा दिया गया है ।
गाँधी — लाल पृथ्भूमि में सफ़ेद रंग से खींची गई आकृति। गाँधी की पीठ है। पीले फूल हैं। में पूछती हूँ, लाल क्यों? लाल तो क्रांति का प्रतीक है ? जवाब मिलता है — गाँधी जी क्रांतिकारी ही थे ।
और भी बहुत से चित्र है। एक परिवार को दिखाती एक तस्वीर। एक तरफ बर्तन है। यह पूछने पर कि उस परिवार में सिर्फ स्त्रियां है, जवाब मिलता है — नही बड़ी आकृति एक पुरुष की है । कुछ लैंडस्केप्स हैं । बहुत से पेड़, पत्तों से रहित, ऊपर चांद । बीच मे अकेले बैठी एक लड़की । उदास है ? नही मेम, खयश गई। बच्चों के जीवन में उदासी के लिए जगह नही । एक सड़क है, रात है, बीच मे क्या है ? परछाइयां हैं, मेम । शिमला है, रात में हर कंपिस्ट में परछाई है । लोग भी परछाईयों की तरह ही तो हैं ।
सीढ़ियों के बाद हॉल का प्रवेश द्वार, अंदर खूब भीड़ है। बहुत से बच्चे अपने द्वारा बनाये गए मॉडल्स को दिखाने की आतुरता से भरे। अभिभावकों की भीड़। एक-एक मॉडल के साथ बहुत से बच्चे । बच्चे हमें ऐसे समझते हैं जैसे बड़ों को जीना सिखा रहे हैं। उनके द्वारा की गयी गलतियों को सुधार रहे हैं । कैसी दुनियाँ दी है बड़ों ने इन्हे ? जहां की हवा सांस लेने लायक नही बची, जहां पानी नही बचा ? पेड़ नही, हरियाली नही, जंगल नही ? पशु लुप्त होते जा रहे हैं और जहां बस्तियाँ ही बस्तियाँ बस्ती जा रही हैं । बस्तियाँ….. जो देर सबेर खुद भी लुप्त हो जाएंगी ?
बड़े जागरूक नही। बच्चे हैं । वे जीना चाहते हैं और उनके सामने पूरी ज़िंदगी पड़ी है । वे पानी, हवा, धरती, आपदाओं, ऊर्जा की चुनौतियों को स्वीकार कर रहे हैं। उनके लिए ओजोन एक नो-जोन क्षेत्र बन गया है, शहर धुएं और प्रदूषण से भरे ।
उनके मॉडल साफ साफ कह रहे हैं — जल बचाओ, साफ़ करके दोबारा इस्तेमाल करो, बारिश का पानी एकत्र करो। वे हाथ से मल उठाने का विरोध कर रहे हैं, सीवर की नालियां बनाकर उनकी उचित निकासी की बात कर रहे हैं । उनके मॉडल वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत दिखा रहे हैं। वे प्रदूषण रहित और साफ-सुथरे शिमला की तस्वीर चाहते हैं, वे हमें नवीनीकरण का रास्ता दिखाना चाहते हैं । बच्चों की इस ऊंची सोच के साथ कदमताल कर हम बालिगों को इन मुद्दों पर गंभीरता दिखानी ही होगी ।
सैंट एडवर्ड्स स्कूल प्रिंसिपल फादर अनिल विल्सन सेक्वेरा ने लाज़वाब प्रदर्शन के लिए बच्चों और अध्यापकों को बधाई दी ।