काव्यवर्षा, ज्वाली, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
वो चेहरा बदल के आया था
शराफत का एक चोला
उसने भी लटकाया था
सुनो ! एक भेड़िया
मेरे घर भी आया था
बहलाने -फुसलाने लगा
बहुत प्यारी हो तुम,
कह के जाल बिछाने लगा
उसकी आँखों में, फ़रेब,
ज़रा भी, नज़र न आया था
सुनो ! एक भेड़िया
मेरे घर भी आया था |
बहुत ऊँची है उड़ान तुम्हारी
खूबसूरत लगती है
तेरे कानों की बाली
दिलकश, उसकी बातों ने
मुझको थोड़ा सा बहकाया था
सुनो ! एक भेड़िया
मेरे घर भी आया था |
धीरे -धीरे वो क़रीब,आने लगा
कल, दिखा के
मेरे आज में आग, लगाने लगा
उसके इरादों ने जिस्म, क्या
रूह, को भी डराया था
सुनो ! एक भेड़िया
मेरे घर भी आया था |
पर मैंने बता दिया उसको,
मैं कमजोर नहीं, आँखों से
सुना दिया उसको,
मेरी हिम्मत के
आगे वो धर-धराया था
सुनो !एक भेड़िया
मेरे घर भी आया था |