बरखा रानी रूठ गई है
धरती तपन असहाय।
चमकते सूरज से लग रहा
आज हर हृदय को भय।।
फसलें पानी मांग रही हैं
सूखे नदी तालाब।
सर्द मौसम की यह बेरुखी
सबसे मांगे जवाब।।
कल तक था जो हरा-भरा
उस पर संकट अकाल।
बूंद-बूंद को हम तरसेंगे
यही रहा अगर हाल ।।
कुदरत से कर तू छेड़-छाड़
होगा यही परिणाम।
कहीं पर बाढ़ और जलजला
कहीं पर रेगिस्तान ।।