January 31, 2025

ऋषि दुर्वासा का शाप व मोहिनी एकादशी

Date:

Share post:

डॉ. कमल के. प्यासा

डॉ. कमल के. प्यासा

एकादशी के व्रत के बारे में आप सभी ने सुन रखा होगा और जानते भी होगें, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर माह दो एकादशियां आती हैं और वर्ष भर कुल मिला कर 24 एकादशियाँ बन जाती हैं। माह के हर पक्ष में एक एकादशी आती है अर्थात कृष्ण व शुक्ल पक्ष की एकादशी। वर्ष में आने वाली इन सभी एकादशियों के अपने अलग अलग नाम व अलग अलग फल प्राप्त होते हैं। आज के आलेख में जिस एकादशी की चर्चा हैं, वह है मोहिनी एकादशी।

मोहिनी एकादशी का नाम मोहिनी एकादशी क्यों पड़ा इसकी भी अपनी पौराणिक कथा है, जिसमें भगवान विष्णु जी को मोहिनी रूप में अवतरित दिखाया गया है। पौराणिक साहित्य (विष्णु पुराण) के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि देव इंद्र जब अपनी प्रजा के दुख दर्द को भूला कर अपने मित्र, देवताओं व दरबारियों के साथ अप्सराओं के नाच गानों व ऐशोआराम में व्यस्थ रहने लगे थे, तो आम जनता में त्राहि त्राहि मची थी। ऋषि मुनि, असुरों के डर से पूजा पाठ व यज्ञ आदि का अनुष्ठान नहीं कर पा रहे थे। जब दुर्वासा ऋषि को इस संबंध में जानकारी मिली तो उनसे नहीं रहा गया और वह सीधे ही देव इंद्र के दरबार में जा पहुंचे। उधर देव इंद्र व अन्य मित्र देवता भी अप्सराओं के नाच गानों में मस्ती मार रहे थे, जिन्हें देख कर दुर्वासा ऋषि को बड़ा दुख हुआ।

दुर्वासा ऋषि ने औपचारिकता निभाते हुए इंद्र देवता को अपनी ओर से फूलों का हार भेंट किया, जिसे तुच्छ समझ कर देव इंद्र ने उसे अपने हाथी ऐरावत को दे दिया। हाथी ने उस हार को अपने पैरों के नीचे कुचल डाला। ऋषि दुर्वासा, जो कि अपने क्रोधी स्वभाव के लिए पहले से ही परिचित थे, से अपना अपमान नहीं सहा गया और उसी समय उन्होंने इंद्र व सभी देवताओं को ऐशपरस्ती में मस्त रहने के कारण श्रीहीन होने का शाप दे दिया। जिससे शीघ्र ही उनकी सारी सुख सुविधायें ख़तम होने लगीं और देखते ही देखते दैत्य बली द्वारा इंद्र लोक के साथ ही साथ तीनों लोकों पर अधिकार भी कर लिया गया। अब इंद्र के साथ सभी देवता ऋषि मुनि इधर उधर भटकने लगे और शाप से मुक्त होने का उपाय खोजने लगे।

ऋषि दुर्वासा से भी सभी ने कई बार क्षमा याचना की, जिस पर उन्होंने क्षीर सागर मंथन के लिए कहा। फिर इस पर विचार करते हुए सभी भगवान विष्णु जी के पास पहुंच गए। भगवान विष्णु ने उन्हें क्षीर सागर मंथन के लिए दैत्यों को भी साथ लेने को कहा, क्योंकि सभी तरह के सुख सुविधाओं के साथ ही साथ ये लोग सभी शक्तियों से भी तो वंचित हो चुके थे। दूसरी ओर दैत्यों को भी यह भली भांति मालूम था कि क्षीर सागर मंथन से बहुत कुछ निकलेगा, इसलिए दैत्य भी मंथन में साथ देने के लिए (बराबर के हिस्सेदारी) राजी हो गए थे। सागर मंथन की तैयारी के लिए वासुकी नाग को नेती के रूप में व मंदाचल पर्वत को मथनी के रूप में प्रयोग करने के लिए लिया गया और मंथन का कार्य शुरू हो गया।

समुद्र के मंथन पर सबसे पहले हलाहल (विष) निकला, जिसे भगवान शिव पी गए। फिर कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ माणिक, कल्प वृक्ष, अप्सरा रंभा, माता लक्ष्मी के पश्चात जब वारूणी निकली तो उसे दैत्यों को पीने को दिया गया। इसके पश्चात चंद्रमा, पंचजन्य शंख, पारिजात वृक्ष, शारंग धनुष आदि निकलें जिनका आपसी बटवारा कर लिया गया।लेकिन अंत में जब अमृत कलश निकला तो उसके लिए दैत्यों और देवताओं में खींच तान शुरू हो गई।

देवताओं व दैत्यों की लड़ाई को देख कर भगवान विष्णु ने निवारण के लिए खुद मोहिनी का रूप धारण करके (अवतरित हो गए) तथा अमृत कलश दैत्यों को मोहित करते हुए उनसे ले कर, देवताओं में बांटने लगे क्योंकि विष्णु के मोहिनी रूप पर दैत्य लट्टू होकर सब कुछ भूल चुके थे। लेकिन उसी मध्य चालाकी से एक दैत्य स्वरभानु देवताओं के बीच घुस कर अमृत पी गया जिस पर भगवान विष्णु ने आपा खो दिया व सुदर्शन चक्र का प्रयोग करके उसके सिर को धड़ से काट  कर अलग कर दिया और वह राहु केतू (सिर धड़) नामक ग्रहों के रूप में ब्रह्मांड के चक्कर लगाने लगे। यही राहु केतु नाम के दोनों ग्रह ही आगे सूर्य व चंद्रमा को ग्रहण भी लगाते हैं। यह सारी जानकारी जब असुर राजा बली को मिली तो वह बड़ा क्रोधित हो गया तथा देवताओं से लड़ने लगा, लेकिन उसकी एक न चली और वह हार गया तथा देव इंद्र को अपना राजपाठ वापिस मिल गया।

इस प्रकार अमृत का पान करने से सभी देवी देवता धन दौलत, वैभव व ऐश्वर्य संपन्नता के साथ ही साथ अमरत्व को भी प्राप्त हो गए व दुर्वासा द्वारा दिया श्रीहीन होने का शाप भी समाप्त हो गया। तब से इसी दिन भगवान विष्णु जी की पूजा पाठ के साथ ही साथ व्रत भी रखा जाने लगा। इसी लिए इस दिन व्रत के लिए, प्रात: बिना साबुन के स्नान करके पीले वस्त्र धारण करने चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा पाठ के साथ ही साथ देवी लक्ष्मी का भी पूजन करना चाहिए। इस दिन का व्रत निर्जल ही किया जाता है, चावल व चावल से बनी किसी भी वस्तु का सेवन नहीं किया जाता। इस दिन तुलसी भी नहीं तोड़ी जाती। भोग में तुलसी जरूर डाली जाती है। केले के पेड़ की पूजा व दिया जलाना शुभ समझा जाता है। पीपल के 21 पत्तों पर श्री हरि लिखना शुभ समझा जाता है।

इस वर्ष मोहिनी एकादशी 18/05/2024 को सुबह 11:22 से 19/05/2024 को दिन के 1:50 मिनट तक होगी। व्रत का पारण समय 20/05/2024 को सुबह 5:28 से 8:12 के बीच का रहेगा। आप सभी को मोहिनी एकादशी की बधाई व शुभकामनाएं।   

Daily News Bulletin

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

Telangana Eyes 520 MW Mega Projects in Himachal

Deputy Chief Minister of Telangana, Mallu Bhatti Vikramarka called on Chief Minister Thakur Sukhvinder Singh Sukhu at New...

रिज मैदान पर गूंजे भजन और राम धुन, शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पुण्यतिथि के अवसर पर रिज मैदान स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा पर अध्यक्ष हिमाचल...

TB-Free India Mission: SJVN Leads the Charge with Ni-Kshay Pledge

SJVN has reaffirmed its dedication to India’s mission of eliminating tuberculosis (TB) by actively participating in the 100...

उमंग फाउंडेशन 1 फरवरी को लगाएगा रक्तदान शिविर

इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल के ब्लड बैंक में खून की भारी कमी के मद्देनजर उमंग फाउंडेशन रिज...