दीप्ति सारस्वत प्रतिमा
सोचती हूँ
1
पले हैं हम बढ़े हैं
एक स्वतंत्र राष्ट्र में
राष्ट्र जो है
भारत इंडिया हिन्दोस्तान
जो जिस नाम से पुकारे
लौटा कर देता प्रेम
सबको एक समान
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2
कहती मैं मोची को
भाई सिल दो मेरे जूते
कड़कती सर्दी में
वह देता अपनी गद्दी
बैठने को मुझे
बोलता , लो बहन जी अभी लो
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3
भाईजी क्या भाव दिए
ये पटाखे वो दीवले
कहता पहचान का व्यापारी
दीपावली है आपसे
अधिक क्या लेना दाम
दो फुलझड़ी उपहार आपको
मेरी ओर से
आपकी शुभ हो दीपावली
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4
राजपूत एक परिवार ने
बेझिझक अपनाया मुझे , सहर्ष सोल्लास
विहोपरांत
मेरे परिवार
संस्कार और शिक्षा को
देते हुए पूरा पूरा मान
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5
कारीगर थे वे ईमानदार और बहुत ही कुशल
धुनते रहे थे उस रविवार
मेरी छत पर रूई रजाइयों की
आस पड़ोस , मुहल्ले भर की
रहने वाले थे मुजफ्फरनगर के
नाम बताए थे अहमद और करीम
कुछ मशक्कत और भूख भांप उनकी
तो कुछ श्राद्ध के चलते
बना कर परोसा था मैने
अपनी तरफ़ से पका सकी जो
संस्कारों के अनुरूप भोजन
घर की सबसे सुंदर थालियों में
उनकी तृप्ति दे गई पितरों को मेरे
असीम संतुष्टि ,
इस बार के श्राद्ध के दिनों में
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6
सत सृ अकाल कहता
आ कर मिला एक छोटा भाई
पंजाब के सुदूर अंतरंग क्षेत्र से
सप्रेम निमंत्रण देने पे
लंबा सफ़र कर आया ,
हमारे एक पुस्तक विमोचन में
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7
क्राइस्ट और कैथोलिक चर्च ने
शिमला की
हर बार बांह फैलाए दर्ज की
निःसंकोच
अपनी धर्म सभाओं में
हमारी उपस्थति
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8
माता – पिता ने नहीं टोका कभी
ब्राहम्मण हैं हम
ये लॉकेट क्रॉस का
क्यों लटकाए घूमती हो गले में…
या कि सहेली है तुम्हारी
छोटी जात की
क्यों ले आती हो घर और
खाती हो एक थाली में साथ ही…
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9
सोचती हूँ
ज़रूरत ही क्या है
इस अनुभव को
सांझा करने की
जब कि…
अहम हिंदुस्तान
अहम ब्रह्मस्मि