सब्जी-मंडी ग्राउंड पटाखों की दुकानों से अटा पड़ा था| शिमला नगर प्रशासन ने इस वर्ष दीपावली पर पटाखे बेचने के लिए यह स्थान निश्चित किया था| दस वर्षीय भोलू जिसके पिता दिहाड़ी पर काम करते थे, बार-बार इस पटाखा बाजार का अवलोकन कर रहा था| कहीं रंग-बिरंगे अनार कहीं शक्तिमान बम कहीं फुलझड़ी कहीं आसमान की ऊंचाइयों को छू लेने को तत्पर रॉकेट कहीं चकरी तो कहीं हवा में गोल-गोल घूमने वाली सीटी|
वह इन दुकानों को ऐसे निहार रहा था जैसे कोई भिक्षुक मिठाइयों को निहारता है| यदि आज भगवान उसके सामने उपस्थित हो जाते और मनचाहा वर मांगने को कहते तो वह बिना एक पल गवाये पटाखों की एक दुकान मांग लेता| मगर उसके घर वालों का आर्थिक सामर्थ्य इतना नहीं था कि वह पटाखों के बारे में सोच भी सकें | भोलू ने घर आकर अपने जान-पहचान के भगवान यानी अपनी मां का आंचल पकड़ लिया और पटाखे खरीदने की जिद्द करने लगा| मां ने आश्वासन दिया कि पिताजी के आते ही वह उसकी इच्छा पूरी कर देगी, मगर पिताजी जब घर पहुंचे तो बड़े मायूस थे| उनका मालिक जान-बूझ कर किसी काम से बाहर चला गया था और किसी भी मजदूर को आज की मजदूरी नहीं मिली थी|
मगर मां तो मां होती है उसने तुरंत घर में रखी हुई कुछ कांच की बोतलें व प्लास्टिक का सामान इकट्ठा किया और कबाड़ वाले के हवाले कर दिया| माँ ने सारी जुगत लगा कर इतने पैसों का इंतजाम कर लिया था जिसे एक फुलझड़ी का छोटा सा पैकेट खरीदा जा सके| यद्यपि भोलू तो बहुत से पटाखों का सपना संजोए हुए था मगर फिर भी इस फुलझड़ी के पैकेट को पाकर वह प्रसन्न हो गया था|
रात होते ही उसने चूल्हे की आग से फुलझड़ी जलाई और खुशी से झूमता हुआ घर के बाहर आ गया| उसने देखा पूरा शहर तरह-तरह की रोशनियों से जगमगा रहा था| हर घर में दीपमाला की गई थी|
कहीं पर रंग-बिरंगे अनारों के चलने के कारण दूधिया रोशनी की छटा थी, तो कहीं पर रॉकेट अपनी रंगीन रोशनी से अंधेरे आसमान को दीप्त कर रहे थे, तो कहीं चकरी गोल-गोल घूम कर अपनी सुन्दरता का प्रदर्शन कर रही थी| उसे भी ऐसे ही रोशनी करने वाले पटाखे पसंद थे, इतने सारे पटाखों के आगे उसकी फुलझड़ी का अस्तित्व शून्य सा लगने लगा| वह अनायास ही उदास हो गया| तभी उसने देखा कि उनके पड़ोस में गगनचुंबी अट्टालिका में रहने वाले सेठ जी का इकलौता बेटा राहुल पटाखों का एक बड़ा सा थैला लेकर उसके पास आ रहा है| राहुल ने आते ही कहा, ‘मुझे अकेले पटाखे चलाने में मज़ा नहीं आ रहा, मेरे पास बहुत-से रॉकेट-अनार हैं| चलो साथ-साथ चलाते हैं|’अंधा क्या चाहे, दो आंखे|
भोलू तो एक बैरागी पागल सा हो गया| उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अनार चलाये है या रॉकेट| धीरे-धीरे मोहल्ले के अन्य बच्चे भी अपने-अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए अपने पटाखों सहित भोलू के आंगन में आ गए| भोलू के अड़ोस-पड़ोस के बच्चे भी अब वहीँ इकट्ठे हो चुके थे| उनके पास उत्साह था और राहुल के पास उजास बिखेरने वाले पटाखे| दोनों का मेल खूब जमने वाला था| अब तक बच्चों के अभिभावकों को भी ये एहसास हो चुका था कि ख़ुशीयों को किसी आंगन की चारदिवारी में क़ैद करके नहीं रखा जा सकता अपितु क़ैद ख़शियाँ सबके साथ बांटने से ही बढ़ती हैं| उधर भोलू के घर में अब तक इतने पटाखे जमा हो गए थे कि बच्चों के अभिभावकों को डर लगने लगा कि कहीं कोई हादसा न हो जाए| अतः वे बच्चों की निगरानी करने हेतु भोलू की बस्ती की तरफ़ चल आए मगर वह ख़ाली हाथ नहीं आए थे| उन सब के हाथों में मिठाइयों थीं| दिलों में बच्चों के लिए प्यार व ढेर सारे आशीर्वाद थे तथा सबके मुंह पर प्यार भरे शब्द थे, ‘हैप्पी दिवाली|’