
रुख बदला
कैसा हवा का ?
बाजार दाम
आसमान छूने लगे !
इंसानियत की कीमत
हुई जीरो
कोई भी छू इसे
मसलने लगे ।
जैसे फूल खुद ही
फूलों से उलझने लगें !
रुख बदला
कैसे हवा का ?
मायने जिदगी के
बदलने लगे,
देखोआदमी के हाथों
आदमी कैसे कैसे
सारे आम आज बिकने लगे !
रुख बदला
कैसे हवा का ?
भाव जुबान के भी
पल पल फिसलने लगे !
क्या बने गा,
मुल्क का यारो ?
रहनुमा खुद ही
दलाल बनने लगे !
रुख बदला
कैसे हवा का ?
बाजार दाम
आसमान छूने लगे !