हिमाचल की राजधानी शिमला में गत दिनों समिधा शब्द एवम संस्कृति का विचार मंच के तत्वाधान में एक व्यंग्य गोष्ठी का आयोजन मॉल रोड पर स्थित गेयटी थियेटर में हुआ;इस अवसर पर व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय,संजीव कुमार,लालित्य ललित और अशोक गौतम ने भागीदारी की। इस अवसर पर व्यंग्य पाठ और व्यंग्य विमर्श का सत्र रखा गया।व्यंग्य पाठ के दीप्ति सारस्वत,डॉक्टर कुंवर दिनेश,कुल राजीव पंत ने अपनी सामयिक रचनाओं का पाठ किया।
इस मौके पर दिल्ली के सक्रिय व्यंग्यकार लालित्य ललित को महाकवि क्षेमेंद्र सम्मान से सम्मानित किया गया।इस मौके पर प्रेम जनमेजय,संजीव कुमार,अशोक गौतम भी सम्मानित किए गए। इस मौके पर अशोक गौतम के व्यंग्य संग्रह “फर्जी की जय बोल” वा सौरभ वशिष्ठ के कविता संग्रह “खिड़की जितना आसमान” के साथ दिनेश चमोला द्वारा संपादित पुस्तक “सृजन के बहाने सुदर्शन वशिष्ठ” का लोकार्पण भी हुआ। सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्रीनिवास जोशी,पूर्व आईएएस ने की।इस अवसर पर चिंतक के आर भारती, पूर्व आईएस भी उपस्थित रहें। समारोह में सेतु पत्रिका के संपादक डॉक्टर देवेंद्र गुप्ता,डॉक्टर कर्म सिंह,पूर्व सचिव हिमाचल भाषा साहित्य अकादेमी सहित दर्जन भर स्थानीय गण्यमान्य लेखक मौजूद थे। व्यंग्य की भाषा पर बोलते हुए डॉक्टर संजीव कुमार ने कहा कि व्यापक स्तर पर व्यंग्य लेखकों को जोड़ा जाना चाहिए ताकि व्यंग्य को विस्तार मिल सकें।
वहीं लालित्य ललित में कहा कि विसंगतियां कहीं बाहर से नहीं आती,वह तो अपने आस पास ही फैली हुई हैं केवल चौकन्ने भर होने की बात है,व्यंग्यकार तो बहुत है लेकिन व्यंग्य आलोचना के क्षेत्र में अभी व्यापक स्तर पर काम होना बाकी है,अभी सुभाष चंदर,रमेश तिवारी,रणविजय राव और चंद्रकांता का नाम लिया जा सकता है। विशिष्ट अतिथि को आसंदी से बोलते हुए डॉक्टर देवेंद्र गुप्ता ने व्यंग्य के निर्धारण पर कहा ” आधुनिक और समकालीन लेखन में व्यंग्य एक अनिवार्य हिस्सा है जो जीवन की रोजाना की कार्यवाही को नियंत्रित करता है,इस अवसर पर देवेंद्र गुप्ता ने कई पत्रिकाओं का जिक्र करते हुए कहा व्यंग्य एक शक्ति है जो मानवीय धरातल पर मनुष्य की विचारधारा को एक आधार प्रदान करती है।कालम राइटिंग पर भी बोलते हुए कहा कि संतुलन बिठाना भी बेहद आवश्यक है ताकि पाठकों से जुड़ाव बना रहें।
उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में बोलते हुए कहा निश्चित ही आज व्यंग्य आलोचक की कमी हैं इस दिशा में लोगों को सक्रिय करने की बेहद आवयश्कता है। व्यंग्य एक उत्तरदायित्व पूर्ण कला है।हिंदी मंच कविता ने निश्चित ही व्यंग्य की धाराओं को कुंद किया है,जनरुचि को देखते हुए यह उचित क्रिया नहीं है। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए श्रीनिवास जोशी ने कहा ” हास्य और व्यंग्य दोनों क्रियाएं अलग है,कहना चाहूंगा कि व्यंग्य के प्रतिमान तेजी से बदल गए हैं देखिए कल ही अमावस्या गई है और आज इस सभागार में कितने चांद निकल आएं है।खुशसूरती बनावटी नहीं होती,वह निष्कपट होती है।इसी तरह व्यंग्य को नजदीक से जाना है,अनिल सोनी,राजेंद्र राजन का नाम यहां उल्लेखनीय है कि बेतकल्लुफ व्यवस्थाओं पर जो प्रहार होता है वह व्यंग्य है।प्रेम जनमेजय,लालित्य ललित ने अपने व्यंग्य के माध्यम से अपने पात्रों को आम जनमानस के बीच पहुंचाया है।निश्चित ही वे बधाई के पात्र है।
व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय ने कहा ” रचना और रचना पर बात की जाए,;यह आवश्यक है।इसमें सबसे बड़ी बात जो लगीं व्यंग्य को विचार की दृष्टि से जोड़ा जाना जरूरी कदम है। जो गांव की पगडंडियां है मुझे वहां चलना है,मुझे राजपथ पर नहीं चलना,मुझे निम्न स्तर पर जुड़े विषयों से लड़ना है और वंचित विषयों का प्रतिनिधित्व करना है।व्यंग्य में अगर बेबाकी नहीं है तो वह अशक्त होगा,उसे कबीर की तरह अपनी बात को रेखांकित करना होगा।व्यंग्य की सबसे बड़ी शर्त यह होती है कि वह बेचैनी पैदा करती है।व्यंग्य आपको किसी निष्कर्ष पर लेकर नहीं जाता है,वहां आपको खुद यात्रा करनी पड़ती है।व्यंग्य के तीन रूप है रचना में व्यंग्य,विसंगति जो संगत नहीं।व्यक्ति के क्रियाओं पर हमें देखना है कि हमारे व्यंग्य आलोचक सही आलोचना नहीं कर पाते। कार्यक्रम का आयोजन हिमाचल प्रदेश भाषा साहित्य अकादेमी के सहयोग से किया गया।समारोह में तीन दर्जन से ज्यादा साहित्यकार उपस्थित थे।