March 12, 2025

क्या है काल अष्टमी?

Date:

Share post:

प्रेषक: डॉ. कमल के. प्यासा

डॉ. कमल के. प्यासा

शिव पुराण व स्कंद पुराण में एक कथा आती है जिसमें काल भैरव कि उत्पत्ति की जानकारी मिलती है। कहते हैं कि एक बार सृष्टि के निर्माता देव ब्रह्मा, पालक देव विष्णु तथा संहारक देव महेश में आपसी तकरार होने लगा, जिसमें तीनों अपने आप को एक दूजे से श्रेष्ठ होने का दावा करने लगे। इस आपसी तकरार को समाप्त करने के लिए देव लोक के सभी ऋषि मुनि और देवता एकत्र हुए। इस समस्या का निदान करते हुए उन्होंने भगवान शिव को सबसे ऊपर बता कर अपना निर्णय दे दिया। देवताओं के इस निर्णय को सब ने एक मत से स्वीकार कर लिया, लेकिन देव ब्रह्मा इसके लिए आना कानी करते हुए, देव शिव पर बरस पड़े और उन्हें गुस्से में कुछ अप शब्द कहने लगे, जिस पर देव शिव भी आग बबूला हो कर देव ब्रह्मा पर काल भैरव रूप (जिसे कालेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है) धारण करके टूट पड़े थे, और उनके पांच सिरों में से एक सिर को ही काट डाला।

उस समय देव शिव के उस उग्र रूप को देखकर सभी उपस्थित देव व ऋषि मुनि डर गए। जिस दिन देव शिव उस रुद्र रूप में आए थे, उस दिन मार्ग शीर्ष की अष्टमी थी और इसी लिए इसे काल अष्टमी के नाम से जाना जाता है। आगे देव शिव को इसी ब्रह्म हत्या के दोष के लिए (दंड के रूप में काल भैरव को) कई तीर्थों का भ्रमण भी करना पड़ा था तथा देव ब्रह्मा ने भी अपनी भूल के लिए क्षमा मांग ली थी। अंत में काल भैरव (भगवान शिव) भी अपने वास्तविक शिव के रूप में आकर वाराणसी में जन पालक रूप में और वहीं काल भैरव देव शिव के संरक्षक के रूप में स्थापित हो गए। तभी से हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल अष्टमी कहते हैं और काल भैरव भी इसी दिन प्रकट हुए थे। तभी तो इनके लिए यह व्रत रखा जाता है और पूजा अर्चना की जाती है।

नारद पुराण के अनुसार काल भैरव की आराधना से सभी प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं और पुराने से पुराने रोगों से मुक्ति मिलती है तथा सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। काल अष्टमी की पूजा अर्चना के लिए सबसे पहले स्नान आदि करके, भगवान शिव पार्वती के चित्रों के साथ ही साथ काल भैरव का चित्र स्थापित करके गंगाजल के छिड़काव के साथ गुलाब के फूलों व हारों से श्रृंगार किया जाता है। कुमकुम हल्दी से टीका लगा कर, गुगल धूप के साथ शिव चालीसा व भैरव चालीसा का पाठ किया जाता है। चढ़ावे में काल भैरव को कच्चा दूध, कहीं कहीं शराब, हलवा पूरी, जलेबी या अन्य पांच प्रकार की मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। जाप में ‘ॐ उन्मत भैरवाय नमः’ का जाप किया जाता है। व्रत के पश्चात काले कुत्ते को मीठी रोटी के साथ कच्चा दूध पिलाया जाता है। अर्ध रात्रि को भी काल भैरव का पूजन धूप, उड़द की दाल, काले तिल तथा सरसों के तेल के साथ करके, दान किया जाता है। साथ ही भजन कीर्तन का आयोजन भी रहता है। इन्हीं सभी बातों के साथ ही साथ काल भैरव के मंत्रों का भी उच्चारण किया जाता है, जैसे कि: ‘ॐ काल भैरवाय नमः। ॐ भयहरम्ण च भैरव:। ‘ आदि। दान का इस दिन बहुत महत्व रहता है, इस लिए इस दिन कच्चे दूध, काले-सफेद वस्त्रों, कंबलों, सरसों का तेल, तले हुए पकवान, घी, कांसे के बर्तन और जूते व कुत्तों  को मीठी रोटी, गाय को भोजन व रोटी देने का अपना ही महत्व रहता है।

Daily News Bulletin

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

बंदरों और कुत्तों के आतंक से शिमला में बढ़ी घटनाएं

बंदरों व कुत्तों की समस्या को लेकर शिमला नागरिक सभा का एक प्रतिनिधिमंडल नगर निगम शिमला के महापौर...

तंबाकू और मानसिक स्वास्थ्

डॉ कमल के प्यासातंबाकू या नशा किसी भी प्रकार का क्यों न हो, होता घातक ही...

बसंत ऋतु का प्रसिद्ध त्यौहार : होली

डॉ कमल के प्यासाबसंत ऋतु में मनाए जाने वाले त्यौहारों में बसंत पंचमी के अतिरिक्त जो दूसरा प्रमुख...

आंवला एकादशी

डॉ कमल के प्यासाएकादशी का व्रत एक आम जाना माना व्रत है।लेकिन आंवला की एकादशी जो फागुन मास...