
कुत्ते
शहर के, गांव के कस्बे के
चाहे हो गली या कूचे के,
कुत्ते तो कुत्ते ही होते हैं,
दुम हिलाते हैं,
पास आते हैं,
टुकड़ा पाते ही
लाड दिखाते हैं,
जैसा चाहो मान जाते हैं
इशारा पाते ही
वहीं बैठ जाते हैं!
ये सभी तरह के कुत्ते !
क्योंकि कुत्ते तो ठहरे कुत्ते
अपनी पहचान(जात)दिखा जाते हैं !
कुत्तों का इक किस्सा
बहुत ही पुराना है
सभी का जाना पहचाना है।,
हां ,याद आया
नहीं डाला था टुकड़ा ,
मैंने उन कुत्तों को
अपने असूलों में रहते
जिस पर टूट पड़े थे,
मेरे ऊपर
चारों तरफ से
भौं भौं करते
वो तमाम गली कूचे के
कुछ आवारा तो कुछ पालतू कुत्ते !
मैं भी डटा रहा
अड़ा रहा भागा नहीं !
लेकिन कब तक,
किसे डर नहीं होता
कुत्ते से कटने का !
पर मुझे नहीं काटा
मैं बच निकला !
लेकिन भौं भौं कर
आखिर अपनी सीमा से
बाहर खदेड़ने में
सफल हो गए वे कुत्ते !
सीमा के उस पार
हो गया फिर सामना मेरा
गली के दूजे कुत्तों से।
लेकिन
अब की बार बात समझ में
आ गई थी मेरे,
अपने पूर्व अनुभवों से
तुरंत हड्डी का टुकड़ा फैका मैंने
वे सभी दुम हिलाने लगे
मेरे आगे पीछे आने लगे,
मैने भी अपने आदर्शों व
असूलो को भूला ठेंगा दिखा,
बना ली थीआदत
कुत्तों को गांठने की
और समय समय पर टुकड़ा फैंकने की !
अब मुझे कोई डर नहीं
कुत्तों का और उन से कटने का
क्योंकि उन्हें हड्डी फेंकता हूं
तभी तो सभी प्रतिबंधों से मुक्त हूं
जहां चाहूं रह सकता हूं
बिना किसी दूरी (25 किलो मीटर) यू नि
और ठराव (3 वर्ष स्टे)शर्त के !