मां के हाथ की बिरयानी का स्वाद ही कछ और है,
क्योंकि मां का प्यार अनमोल है।
मैं सोचती हूं क्या मिलाती है मां बिरयानी में
जो खाने में इतनी खो जाती हूं मैं,
न जाने कौन सा जादू मिलाया होता है उन्होंने।
सीधी साधी बिरयानी न जाने मेरे लिए कैसे नियामत बन जाती है,
उसमें सोने सी चमक और बारिश की महक समा जाती है।
कुछ भी कहो लेकिन बिरयानी में जान मेरी मां के हाथों से ही आती है,
लगता है मेरा और बिरयानी का पिछले जन्म का कोई रिश्ता रहा होगा तभी तो बिरयानी मेरे घर में मेरे नाम से जानी जाती है।
मैंने अपनी मां से पूछा कि ऐसा क्या डालती हैं वो हमारे खाने में,
की दीवाने हैं हम उनके हाथ के बने खाने के।
तो मेरी मां ने मुस्कुरा कर कहा कुछ नहीं बस तुम्हारी नानी की कृपा और थोड़ा एवरेस्ट तीखा,
फिर बोली दो चम्मच मां का प्यार और तीन चम्मच तुम्हारा ख्याल,
बस ऐसे ही बनती है मेरे हाथ की बनी बिरयानी कमाल।
जो भी रहा हो मां का नुस्खा,
लेकिन मेरी मां के हाथ की बनी बिरयानी जैसा नहीं है कोई दूजा।