प्रियंवदा, स्वतंत्र लेखिका, सुंदरनगर, हिमाचल प्रदेश
काव्या वर्षा ने ‘नील गगन को छूने दो’ में 117 कविताओं का काव्य संग्रह लिखा है, जिसका प्रथम संस्करण वर्ष 2021 में निकला । निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रिब्यूटर्स, आगरा से निकला यह संग्रह, काव्य वर्षा ने अपनी मां पवनी कुमारी एवं भाभी मोनिका सिंह को साथ ही उन सभी सहयोगियों को जो इस पथ पर उनके साथी बने उन सबको समर्पित किया है । जिसमें विरेन्द्र शर्मा वीर ने “साधना का साकार रूप है – काव्य वर्षा का रचना संसार” लेख में अपने शब्दों में काव्या वर्षा के कृतित्व को और व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति देकर अपने सामाजिक, मानवीय और साहित्यिक दायित्व के निर्वहन का सफल प्रयास किया है । इसी संग्रह में डॉ. विजय कुमार पुरी ने भी “संघर्ष अकेले कर लूंगी मैं – सच में सिद्ध कर दिया । “लेख लिखकर काव्या वर्षा में आपको पाठकों में यह विश्वास भरने का सफल प्रयास कर दिया है कि वह केवल शरीर के विभिन्न अंगों का प्रयोग साधारण मनुष्यों की भांति नहीं कर पाती लेकिन असाधारण रूप से वे अंग उसके दिमाग में उसकी जिजीविषा बन कर पूर्ण विकसित हो गए हैं । काव्या वर्षा केवल साथ भर चाहती हैं वह स्वयं सक्षम हैं ।
स्वयं काव्या वर्षा कहती हैं कि “मेरी सिर्फ एक ऊंगली काम करती है । जिनकी दस उंगलियां काम करती हैं, वो तो बहुत कुछ कर सकते हैं।” ‘नीलगगन को छूने दो’ काव्य संग्रह के माध्यम से काव्या ने अपने भाव पक्ष को इतनी मजबूती के साथ प्रस्तुत किया है कि पढे लिखे संवेदनशील प्रत्येक व्यक्ति को सोचने के लिए वाध्य होना तो होगा क्योंकि सरल शब्दों में गहरी बात कहना सरल नहीं होता है । कहीं उनका प्रकृति प्रेम झलकता है “मैं बाहर देखना चाहती हूं ।
उस लंगडाती हवा के पर देखना चाहती हूं । कौन खा गया जंगल? वह राक्षस देखना चाहती हूं।”
तो कभी खुद को खुद ही संबल देती काव्या की भावनाएं ऐसे प्रस्फुटित होती हैं कि जो सदियों से बंद है, अंधेरों में, उस सोच में एक रोशनदान होना, जरूरी है । “इस संग्रह में नीलगगन को छूने की भावना से ओतप्रोत कवयित्री ने कभी मुहावरेदार शैली में कभी प्रतीकों और बिम्बो के माध्यम से से अपनी बात रखी है। कभी वह खुशी से प्रेम रस में हिलोरें लेती झूम उठती है,” हैरान हुई कायनात, क्या गजब की बरसात हुई, दिन सुनाता रहा गजल शायरी तमाम रात हुई।
श्रृंगार रस में डूबी नायिका कहती हैं कि “मेरे दिल के कालीन पे मदहोश बैठे हैं…
बड़े नासमझ दिलबर मेरे, दिल खो के बैठे हैं”। तो कभी नारी शोषण व असमानता पर प्रहार करती है तो कभी समाज के ठेकेदारों पर प्रश्न दागती है ।
यह संग्रह काव्या वर्षा को पूर्ण सक्षम और सूक्ष्म बुध्दि कौशल के साथ लेखन के प्रति उनके जुनून को उनकी जिजीविषा को झलकाता है कि लेखन के लिए एक उंगली भी काफी है ढेर सारी डिग्रियां मायने नहीं रखती शब्द ज्ञान और भावाभिव्यक्ती की क्षमता ही काफी है ।
कवयित्री काव्या वर्षा को इस पंखों रहित हौसलों की उडान के हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं । वे निरंतर रचनाशील रहें स्वस्थ तन, मन व चिन्तन के साथ जीवन में नित नई बुलंदी को छूती रहें ।
अपनी पंक्तियों में मैं यही कहना चाहती हूं कि
“वक्त तो लगता है उड़ान भरना,
सीखने में उनको भी जिनके पास पंख हैं,
पर जो पंखहीन है उड़ने चले उनकी दहकती दुपहरी देखिए,
चुभती सर्द रात देखिए,
अग्नि पथ पर बड़े हौसलों का आकाश देखिए,
रो ना दे बदली कहीं…
मौसम का बदला मिजाज देखिए उमड़ा है भावों का कैसा सैलाब देखिए,
मंजिल पाने को उड़ते परिंदे,
कैसे हैं बेताब देखिए ।