राज्य स्तरीय पहाड़ी दिवस समारोह की कड़ी में आज ‘राज्य स्तरीय लेखक गोष्ठी का आयोजन गेयटी थियेटर में किया गया, जिसमें प्रदेश के लगभग 20 साहित्यकारों ने भाग लिया। कार्यक्रम में पदमश्री विद्यानंद सरैक बतौर अध्यक्ष उपस्थित रहे तथा पूर्व प्रशासनिक अधिकारी व वरिष्ठ लेखक के. आर. भारती विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का मंच संचालन कागड़ा के वरिष्ठ साहित्यकार श्री रमेश मस्ताना ने किया। विभाग के उप निदेशक कुसुम संघाईक ने प्रदेश भर से आए विद्वानों का स्वागत किया।
इस अवसर पर प्रदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार सुर्दशन वशिष्ठ ने ‘पहाड़ी भाषा और साहित्य: उद्भव, विकास एवं उपलब्धियाँ’ विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया जिस पर प्रदेश भर से आए विद्वानों ने परिचर्चा की। इस परिचर्चा में सिरमौर से ओम प्रकाश राही, अनंत आलोक तथा दिलीप वशिष्ठ, बिलासपुर से रामलाल पाठक तथा रतन चंद निर्झर, कुल्लू से डाॅ. सूरत ठाकुर तथा दीपक शर्मा, मंडी से कृष्ण चंद महादेविया, ऊना से शांति कुमार स्याल, हमीरपुर से अर्चना सिंह, चंबा से अशोक दर्द, कांगड़ा जिला से रमेश मस्ताना तथा शिमला जिला से ओम प्रकाश शर्मा ने भाग लिया।
परिचर्चा में सामूहिक रूप से एक भाषा एक व्याकरण तथा भाषा के मानकीकरण की बात कही गई। डाॅ. सूरत ठाकुर ने लोक साहित्य, लोकगीत व लोक गाथाओं के माध्यम से भाषा को संरक्षित करने के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। शांति कुमार स्याल ने मिश्रित भाषा का सरलीकरण करके एक संयुक्त भाषा बनाने का सुझाव दिया। अर्चना सिंह ने लोक भाषा में बाल साहित्य की रचना करने पर बल दिया तथा ओम प्रकाश राही, दिलीप विशिष्ठ व अनंत आलोक ने नई तकनीक के माध्यम से युवा पीढ़ी को लोक भाषा व लोक साहित्य से जोड़ने का सुझाव दिया।
कार्यक्रम के अध्यक्ष पदमश्री विद्यानंद सरैक ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि यदि हमें पहाड़ी बोलियों को हिमाचली भाषा का स्वरूप देना है तो उसके लिए हमें मानक चिह्न बनाने होंगे व पर्यायवाची शब्द ढूंढने पडें़गे तथा व्याकरणिक दृष्टि कोण को मध्यनज़र रखते हुए हिमाचली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में शामिल करने हेतु एकजुट होकर प्रयास करना होगा। कार्यक्रम में विभाग के सहायक निदेशक सुरेश राणा, गेयटी प्रबंधक सुदर्शन शर्मा, भाषा अधिकारी अनिल हारटा व दीपा शर्मा तथा अन्य श्रोतागण भी उपस्थित रहे।