मर्यादा पुरूषोतम भगवान राम जी को आज कौन नहीं जानता ?धार्मिक प्रवृति का एक आदर्श व्यक्तित्व,आज्ञाकारी पुत्र,सदाचार और आचरण में सबसे आगे रहने वाले योग्य पति व पिता सूर्यवंशी राम चंद्र जी का जन्म हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास (मार्च-अप्रैल) के शुक्ल पक्ष नवमी के दिन कर्क लग्न में (माता कौशल्या व पिता सूर्यवंशी राजा दशरथ के यहां अयोध्या) हुआ था।

पौराणिक साहित्य को पढ़ने पर भगवान राम के अवतरण की कई एक कथाएं मिलती हैं। त्रेता युग में ही पृथ्वी पर पाप और अत्याचार बहुत बड़ गए थे,राक्षसों ने भी बड़ी उत्पति मचा रखी थी ,जिस पर पृथ्वी ने तंग आ कर भगवान विष्णु से अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रार्थना की थी,जिस पर भगवान विष्णु ने रघुवंश में जन्म ले कर सहायता करने का वचन दे दिया था। उधर त्रेता युग में ही राजा दशरथ की तीन तीन रानियां होने पर भी उनके यहां कोई संतान नहीं थी।उन्होंने ने इसके लिए कई उपाय किए ,लेकिन कुछ नहीं बना तो ऋषि वशिष्ठ जी के कहने पर पुत्रेष्टि यज्ञ ऋषि ऋष्यश्रृंग से करवाने को तैयार हो गए।पुत्रेष्टि यज्ञ की अग्नि से एक दिव्य आकृति ने प्रकट हो कर उन्हें खीर का प्रसाद दिया था,जो कि राजा ने बड़ी रानी कौशल्या को खाने को खाने को दे दिया था।कौशल्या ने उसमें से आधा प्रसाद कैकेई को और कैकेई ने उसका आधा सुमित्रा को दे दिया था।
इस तरह यज्ञ की उस खीर से तीनों रानियां गर्भवती हो गईं थीं । बाद में कौशल्या ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन भगवान राम को जन्म दिया और तभी से यह दिन राम नवमी से जाना जाने लगा।इसके साथ ही साथ कैकेई के यहां भरत और सुमित्रा के लक्ष्मण व शत्रुघ्न ने जन्म लिया था।इसी प्रकार से भगवान विष्णु का राम के सातवें अवतार के रूप में प्रकट की, ऋषि नारद के शाप वाली व जालंधर की पत्नी के शाप वाली कथा भी पौराणिक साहित्य में मिल जाती है। राम नवमी के इस त्योहार रूपी उत्सव को, देश के विभिन्न हिस्सों में लोगों द्वारा अपने अपने ढंग से मनाते हुवे देखा जा सकता है।जिसमें भगवान राम चंद्र के पूजा पाठ ,व्रत के साथ भजन ,कीर्तन,गीत संगीत, भक्ति गीत,झांकियां, भगवान राम की रास लीलाएं,रामायण पाठ,राम लीला मंचन,नाटक ,नृत्य व रथ यात्रा ,सहभोज (भंडारे का आयोजन)आदि कार्यक्रम आ जाते हैं।
प्रमुख रूप के आयोजन विशेषकर अयोध्या,रामेश्वरम(तमिलनाडु),भद्राचलय(तेलंगाना)व सीतामढ़ी(बिहार) के देखे जा सकते हैं।कर्नाटका में तो कुछ एक ,राम नवमी के संगठनों द्वारा आम सड़कों,गली मोहल्लों में ही रामनवमी को बड़े हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है।साथ में पानकम(गुड का बना पेय पदार्थ),व खाने की सामग्री आदि बांटी जाती है।बैंगलोर में तो रामनवमी से एक माह पूर्व ही शास्त्रीय संगीत का सम्मेलन आयोजित किया जाता है,जिसमें जाने माने भारतीय शास्त्रीय संगीत (हिन्दुस्तानी व कर्नाटक शैली)के माहिर अपनी अपनी प्रस्तुतियां देते हैं।
वहीं उड़ीसा,झारखंड,पश्चिम बंगाल व पूर्वी राज्यों के लोग इस त्योहार को जगन्नाथ मंदिर या फिर अन्य वैष्णव मंदिरों में आयोजन करते हैं।इसके साथ ही साथ इसी दिन से रथ यात्रा की तैयारियां भी शुरू कर दी जाती हैं।पड़ोसी देश नेपाल के जनकपुर के (जानकी मंदिर )में सप्ताह भर के लिए दूध व कुवें के पवित्र जल से भगवान राम जी को स्नान करवा कर पूजा अर्चना की जाती है। कुछ भी हो भगवान राम की यह अपनी ही लीला है और यह सब उनके ही रंग हैं।उन्हें मर्यादा पुरूषोतम राम भी इसी लिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने जीवन भर सत्य,धर्म और कर्तव्य का पालन ही किया था।उन्हीं के जीवन से हमें अच्छे संस्कार,परिवार व समाज के प्रति
अपनी जिम्मेवारियां समझने की प्रेरणा मिलती है।भगवान राम का शुभ विवाह स्वयंंबर द्वारा मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री सीता से हुआ था।माता पिता के प्रति आज्ञाकारी होने का प्रत्यक्ष प्रमाण भगवान राम जी के जीवन से ही मिलता है। क्योंकि माता कैकेई ने ही राजा दशरथ को कह कर , बेटे राम को 14 वर्ष के लिए वनवास के लिए भेजा था और अपने सगे पुत्र के लिए राजगद्दी मांगी थी।जिसको माता पिता की आज्ञा मान कर भगवान राम वनवास चले गए थे,कितनी महानता दिखाई थी पुत्र ने अपने माता पिता के सम्मान में !
उधर वनवास में रहते हुवे भी भगवान राम अपने मेल मिलाप के स्वभाव के अनुसार ही , वहां कई ऋषि मुनियों व संतों से मिलते रहे।कई आदि वासियों,निम्न वर्ग के लोगों से भी मिले और उन्हें संगठित करके समाज में एकता की भावना को दिखा कर ,प्रेम से ऊंच नीच का भेद भाव दूर करके जन जन में प्रिय हो गए थे और तभी तो बाद में रावण के साथ हुवे युद्ध में सभी जातियों के लोग व वानर भी उनके साथ खड़े हो गए थे।इस प्रकार वह हर रिश्ते की मर्यादा दिल से निभाते थे। वे एक आदर्श बेटे,पति और राजा का फर्ज निभाना खूब जानते थे। असुरों के संहारक,धर्म के रक्षक,सभी के पथ प्रदर्शक,न्याय प्रिय व दयालु शासक भगवान श्री राम जी को शत शत नमन।