मनमोहन सिंह

कुछ दिन पहले हमारे ज्ञान में इज़ाफ़ा हुआ। हमें पता चला की नारी की अस्मत पर सबसे खतरनाक हमला “फ्लाइंग किस” नामक जदीद हथियार से ही होता है। हम अभी तक बलात्कार और छेड़ छाड़ को ही सब से खतरनाक समझ रहे थे। असल में एटम बम की तरह “फ्लाइंग किस” के ज़हरीले कीटाणु हवा में फैल जाते हैं और किसी पर भी हमला कर सकते हैं। अर्थ यह कि, ज़रूरी नहीं इसका हमला सामने वाले पर ही हो, पीछे वाले पर भी हो सकता है। जो चीज़ हवा में है वो उड़ कर कहीं भी जा सकती है।

पश्चिम के देशों ने इस हथियार का इस्तेमाल हमारे देश में करके हमारी सभ्यता और संस्कृति को मिटाने की कोशिश की है। तभी तो जिसको देखो “फ्लाइंग किस” दे रहा है। खेलों में मेडल जीतने पर खिलाड़ी, मंच से रंगकर्मी, माता पिता को बच्चे, अपने “फैंस” को एक्टर, अक्सर “फ्लाइंग किस” देते देखे जा सकते हैं। असल में “फ्लाइंग किस” का ज़हर हमारी बुनियाद में घोला जा रहा है। इसी कारण हमारी जो पुलिस नारी को नंगा घुमाए जाने, उसे सरेआम पड़तारित करने, पंचायती फरमानों से उसका बलात्कार करने जैसे “मामूली” अपराधों पर मूक दर्शक बनी रहती है उसे भी “फ्लाइंग किस” जैसे जघन्य अपराध को बहुत गंभीरता से लेना पड़ता है। असल में बलात्कार तो किसी एक नारी पर होता है वो भी आमतौर पर गरीब परिवार की होती है। तो अब किसी एक, वो भी गरीब परिवार से, जो आयकर भी नही देता, के लिए तो प्रशासन नहीं बैठा, उसे और कई काम होते हैं।लेकिन “फ्लाइंग किस” तो पूरी नारी जाति पर हमला है, पता नहीं ये उड़ती हुई किस नारी तक पहुंच जाए? आखिर हवा में उड़ती चीज़ है। इससे हमारी संस्कृति दूषित होती है। हमारे इतिहास को देखो नारी को ज़िंदा जलाया गया, उसका चीरहरण का हुआ, उसे बेचा और खरीदा गया, उसकी मंडी तक लगी, पर कभी किसी माई के लाल में “फ्लाइंग किस” देने की हिम्मत नहीं हुई।

हम लोग सब कुछ सहन कर सकते हैं पर “फ्लाइंग किस” नहीं। वैसे तो भारत के प्रबुद्ध नेताओं को “फ्लाइंग किस” का यह मसला यूएनओ में उठाना चाहिए और इसके हमले से बचाव के लिए पश्चिमी देशों को अलग थलग करने की कोशिश करनी चाहिए और विश्व जनमत जुटाना चाहिए। नहीं तो अपने रणबांकुरे तैनात कर उन लोगों को सबक सिखाना चाहिए जो इस खतरनाक हथियार का इस्तेमाल करते हुए दिखें। इससे हमारे बेरोजगार नौजवानों को रोज़गार मिलने के साथ उनमें देशभक्ति की भावना भी पैदा होगी। आखिर सवाल देश की अस्मत और संस्कृति का है।

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