आज़ादी की पहली सुबह
डॉ. जय महलवालबहुत याद आती है वो आज़ादी की पहली सुबह,15 अगस्त 1947 को था जब भारत में तिरंगा फहराया।हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई...
पुस्तक मेले में बाल साहित्य की भरमार
शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान पर सजे पुस्तक मेले में विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रदर्शित पुस्तकों में बाल साहित्य की भरमार है। इन पुस्तकों में कविता,...
उल्कापात कमांए: एक कविता
डॉ. जय महलवाल (अनजान)बड्डिया मेहनता ने डाल बूटे लगाए, फेरी किस मांहनूए रिए सोचे से जलाए, मारी ते जले पंछी पेखेरू, तिना रे जे...
यादें: एक कविता
डॉ. कमल के. प्यासायादें
याद आती हैं
जाती नहीं,
याद ही रह जाती हैं
जिंदगी भर!यादें
यादों में रह कर
आती हैं सताती हैं,
कमबख्त तरह तरह की
फितरतें दिखा,
खूब...
बुलंदियां: डॉ. कमल के. प्यासा
डॉ. कमल के. प्यासा
बुलंदियां छूना ऊंचा उठाना, अच्छा लगता है खुद को, सब को! बुलंदियां बढ़ाती हैं, दूरियां और फासले! जिनसे पनपते हैं भरम...
बू : डॉo कमल केo प्यासा
बू गंदगी की गलने की सड़ने की चाहे हो दूषित खाद्यानों की या ऋणात्मक सोच विचारों की !बू आ ही जाती है, अंतर...