फासला (बाप बेटा संवाद): डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासामैं बहका हूं !या तुम बहके हो !समझ नहीं कुछ आता !मैं कहता हूंनीचे देखो,तुम बुलंदियां छूते...
आईना: डॉo कमल केo प्यासा
मूक हूं जड़ हूं,चेतन नहीं !देखता हूं दिखता हूं,बोलता नहीं !सच सच कहता हूंझूठ कभी बोला ही नहींसच ही बताता हूं !जैसा जैसा पाता...
ग़ज़ल: मानवता पर डॉo कमल केo प्यासा के विचार
आदमी को आदमी ही खाने लगा है ?लहू अपना ही खुद शर्माने लगा है !महज़ के नाम पर उठती हैं लाठियां !ईमान इतना डगमगाने...
आप और तूं: डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासाइतने से सम्बोधनआप ने, मेरे स्तर और कद मेंअंतर कर दिया।मेरे अधिकार औरफर्ज के दायरों को,दायरों में...
सोच: डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासाखेलताकोई आग मेंचिलचिलाती धूप औरबरसते पानी की बरसात मेंमिट्टी धूल सेतो कहीं गंदगी कचरेकूड़े कबाड़ केढेर सेबैठा...
भूख : जीवन की अद्वितीयता और चुनौतियाँ पर डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासाभूख, कैसी भी हो मिटती नहीं ,मुकती नहीं,बढ़ती है मरती नहीं,तड़पाती है और डालती है खलल, अक्सर...