डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

मैं बहका हूं !
या तुम बहके हो !
समझ नहीं कुछ आता !

मैं कहता हूं
नीचे देखो,
तुम बुलंदियां छूते हो
मैं कहता हूं नीचे उतरो,
तुम हवा में बातें करते हो !

मैं बहका हूं !
या तुम बहके हो !
समझ नहीं कुछ आता !

दिव्य लोक के
छोड़ो सपने,
इधर देखो हकीकत जानो !
ढोल सुहाने दूर से लगते
आईना देखो,
दूजो की बस रहने दो
खुद तुम अपनी बात करो !

मैं बहका हूं !
या तुम बहके हो !
समझ नहीं कुछ आता !

मैं कहता हूं
देश संस्कृति को जानो,
तुम समझ गंवार मुझे
खूब मजाक उड़ाते हो !
समझो खुद मनन करो
दिखावे को रहने दो,
वरना उठती उंगलियां पूछे गी

मैं बहका हूं !
या तुम बहके हो !
समझ नहीं कुछ आता !

पल्लू में झांको
सीमा न लांगो,
कद औकात पहचानो
उगे पंखों को गिर जाने दो !
मैं तो एक ही पग भरता हूं
तुम और ही आगे बड़ जाते हो !

तुम बहके हो !
या मैं बहका हूं !
समझ नहीं कुछ आता !

अरे ध्यान से देखो
इन पक्के बालों व
चेहरे की झुरियों को,
कैसे यहां तक पहुंचा हूं
सोचो जरा जानो तो !

मैं बहका हूं !
या तुम बहके हो !
समझ नहीं कुछ आता !

किसे पता है !
कौन समझ पाए गा
दिल का भरम है जाने दो,
वरना हंसते हंसते कहने वाले
कहते रहेंगे ,
वक्त का का तकाजा है
बेटा बड़ा है,
बाप कौन है पहचानो तो !

मैं बहका हूं !
या तुम बहके हो !
समझ नहीं कुछ आता !
प्रश्न है सबको जानो तो !

फासला (बाप बेटा संवाद)

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