April 17, 2025

टूटी: रणजोध सिंह की कहानी

Date:

Share post:

टूटी: रणजोध सिंह की कहानी
रणजोध सिंह

पुनीत ने एम.बी.बी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण कर डॉक्टर की नौकरी प्राप्त कर ली थी मगर उसे पहला ही स्टेशन हिमाचल प्रदेश का दूरवर्ती क्षेत्र काज़ा मिला था| वैसे तो हिमाचल का अर्थ ही है हिम का आंचल, यानि बर्फ का घर| मगर जिस स्थान पर पुनीत की प्रथम पोस्टिंग हुई थी वह तो एकदम विशुद्ध बर्फ का घर था| पुनीत की अभी नई-नई शादी हुई थी और ऐसे में उसके घर वाले नहीं चाहते थे कि वह शिमला की सुख सुविधाओं को छोड़ कर दूर-दराज के इलाके में जाये|

अच्छा स्टेशन लेने के लिए पुनीत मंत्री जी से मिलना चाहता था, इसी प्रयोजन हेतु उसे अपने अभिन्न मित्र आनंद की याद आई जो हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में प्रदेश सरकार के सचिवालय में एक वरिष्ठ अधीक्षक के पद पर कार्यरत था| वह न केवल सत्ता के गलियारों से अच्छी तरह वाकिफ था अपितु वहां उसकी अच्छी पैंठ भी थी|

फिर क्या, अगले ही दिन वह आनंद के कार्यालय में जा पहुंचा | आनंद ने डॉक्टर पुनीत की मंशा जानकर मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा, “देखो मित्र, मैं तुम्हें मंत्री जी से मिलवा देता हूँ, मगर उनसे बात तुम्हें ही करनी होगी|” आनंद थोड़ी देर के लिए रुका और भेद-भरी मुस्कान के साथ बोला, “वैसे यदि तुम नौकरी करना चाहते हो तो चुपचाप काज़ा चले जाओ क्योंकि जहां तक मैं मंत्री जी को जानता हूं वह तुम्हारी बात नहीं मानेंगे|” मगर डॉ. पुनीत एक बार मंत्री जी से मिलना चाहते थे| इसलिए वे बड़े आत्मविश्वास से बोले, “एक बार तो मंत्री जी से मिलना ही पड़ेगा, कम से कम दिल में यह मलाल तो नहीं रहेगा कि अच्छा स्टेशन लेने के लिए कोई प्रयत्न ही नहीं किया, फिर मुल्ला सबक नहीं देगा तो क्या घर भी नहीं आने देगा|” डॉक्टर पुनीत ने हंसते हुए कहा|

आनंद ने बिना समय गवाए डॉ. पुनीत और मंत्री जी की मुलाकात मंत्री जी के कार्यालय में ही निश्चित करवा दी| मंत्री जी ने छूटते ही पूछा, “आप काज़ा क्यों नहीं जाना चाहते?” “सर, मेरा नया-नया विवाह हुआ है और अभी तक तो विवाह की कुछ महत्वपूर्ण रस्में भी बाकी हैं|” डॉ. पुनीत ने प्रार्थना की| मंत्री जी ने खिलखिलाते हुए कहा, “अरे वाह ! तो आप जीवन का एक नया अध्याय प्रारंभ करने जा रहे हैं ! आप कितने भाग्यशाली हैं एक तरफ आपकी शादी हुई और दूसरी तरफ नौकरी मिली, आपको बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं|” मंत्री जी थोड़ी देर के लिए रुके फिर थोड़ा गंभीर होकर बोले, “डॉक्टर साहब आप युवा हैं यदि इस उम्र में भी आप काज़ा नहीं जाएंगे तो कब जाएंगे? लोग वहां पर हनीमून मनाने के लिए लाखों रूपये खर्च करके जाते हैं और सरकार आपको फ्री में काज़ा जैसे स्वर्ग में भेज रही है|

आप वहां सपत्नीक जाइए, हनीमून भी मनाइए और भोले भाले लोगों की सेवा भी कीजिए| इसे कहते है, आमों के आम और गुठलियों के दाम| आप एक दो साल वहां लगा लीजिए, मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि फिर आपको आपका मनपसंद स्टेशन दे दिया जाएगा|” डॉ. पुनीत चुपचाप मंत्री जी के कमरे से बाहर आ गए और अगले ही दिन काज़ा ज्वाइन करने चले गए| इस घटना के चार वर्ष बाद आनंद का सरकारी काम से काज़ा जाना हुआ| विश्रामगृह के चौकीदार ने उनका स्वागत करते हुए कहा, “आइये इन्क्वारी ऑफिसर साहिब आप का स्वागत हैं|” वे बहुत हैरान हुए उन्होंने तुरंत प्रतिप्रश्न किया, “आपको कैसे पता चला कि मैं यहाँ इन्क्वारी करने आया हूँ ?”

उसने हँसते हुए कहा, साहिब यहाँ पर सरकारी आदमी दो ही वजह से आते हैं, या तो वे किसी ऑफिस में इन्क्वारी करने आते हैं या ऑडिट करने|” दोपहर का समय था, उसी ने उन्हें जलपान करवाया और उसी ने उनके भोजन का प्रबंध भी किया | रात होते होते वह उनके साथ ऐसे घुल-मिल गया था जैसे वह उनका कोई अभिन्न मित्र हो | उसने आनंद बताया कि यहाँ पर क्या अधिकारी क्या सेवादार, क्या इंजीनियर क्या क्लर्क, क्या डाक्टर क्या दुकानदार, सब बराबर हैं| सब मिलजुल कर रहते हैं और बर्फ के मौसम में सभी लोग एक दुसरे की सलामती के बारे पूछते रहते हैं| सरकारी आदमी यहाँ आता बाद में हैं और यहाँ से ट्रान्सफर की अर्जी पहले लगवा देता है|

उसने आगे खुलासा किया, “पर सर, हमारे इस छोटे से शहर में डॉ. पुनीत इसके अपवाद हैं वे कई सालों से न केवल इस शहर में टिके हुए हैं अपितु दिन-रात मरीज़ों की सेवा भी कर रहे हैं|” चौकीदार के मुहँ से डॉ. पुनीत का नाम सुनकर आनंद को अपने मित्र की याद ताज़ा हो गई| उन्हें अपने पर थोड़ी शर्म भी आई कि जीवन की आपाधापी में, वे अपने इस मित्र को कैसे भूल गए| खैर अगले ही रोज़ वे डॉ. पुनीत के सामने थे | डॉक्टर साहिब अपने छोटे से कमरे में जिससे स्थानीय लोग अस्पताल कहते थे, अपने मरीजों के साथ व्यस्त थे| आनंद को देखकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए मगर उनके काम पर कोई असर नहीं पड़ा| पास की कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए दोबारा अपने मरीज़ों को देखने में मसरूफ़ हो गए|

इस बीच वे आनंद की ओर मुखातिब होकर बोले, “बस यार पांच-सात मरीज़ और हैं, उन्हें देख लूं फिर आराम से बैठकर बातचीत करते हैं| इस बीच आनंद ने पाया कि डॉ. पुनीत अपने प्रत्येक मरीज को ऐसे देखते हैं जैसे उसे वर्षों से जानते हो| किसी को ‘अरे जवान’ किसी को ‘अम्मा जी’ किसी को “चाचु” तो किसी को ‘भाई साहब’ कहकर संबोधित करते हैं| बीमारी कोई भी हो, स्टेटोस्कोप का प्रयोग अवश्य करते हैं| जब डॉक्टर साहिब फ्री हुए तो आनंद को अपने अस्पताल के पिछवाड़े, एक कमरे में ले गए, जहां वे सपरिवार रहते थे, परन्तु इन दिनों अकेले थे| इस बीच चौकीदार ने चाय बना दी| आनंद ने उत्सुकतावश पूछा, “यार, तुम पिछले चार सालों से यहीं पड़े हुए हो, तुम्हें तो मंत्री जी ने दो साल बाद मिलने को कहा था|

यदि मिलते तो यकीनन अपना मनपसंद स्टेशन पा लेते|” डॉ. पुनीत मुस्कुराते हुए बोले, “यार शुरू शुरू में तो मेरा भी यही प्लान था कि जैसे तैसे दो साल पूरे करके यहाँ से भाग लूँ मगर धीरे धीरे पता चला कि इस घाटी में दूर दूर तक कोई डॉक्टर नहीं है, वैसे तो ये लोग बहुत मेहनती और शारीरिक तोर पर काफ़ी मजबूत हैं पर यदि बीमार पड़ जायें तो आसपास इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है|” डॉक्टर साहिब थोड़ी देर के लिए रुके और फिर एक गहरी सांस लेकर बोले, “ये लोग डॉक्टर को भगवान मानते हैं, और इन लोगों ने मुझे इतना मान-सम्मान दिया कि मैं चाहते हुए भी यहाँ से ट्रान्सफर न करवा सका| और अब तो सच बात ये है कि इन्हें यहाँ अकेला छोड़ कर तो मैं स्वयं भी प्रसन्न नहीं रह पाऊंगा|”

वैसे डॉ. पुनीत की बातें सचिवालय के प्रांगण में रहने वाले आनंद की समझ से परे थीं, फिर भी उसने चुटकी लेते हुए अगला प्रश्न दाग दिया, “यार मैंने अपनी जिन्दगी में डॉक्टर तो बहुत देखे हैं मगर सर दर्द के मरीज़ को भी स्टेटोस्कोप लगाने वाला डॉक्टर आज पहली बार देखा, यह क्या राज़ है? डॉक्टर साहब ने ज़ोरदार ठहाका लगाया और अति उत्साहपूर्वक बोले, “दोस्त तुम क्या समझते हो मरीज़ सिर्फ दवाई से ठीक होता है, उसकी आधी बीमारी तो तब दूर हो जाती है जब डॉक्टर उसे हँस कर बात कर लेता है और उसे यकीन हो जाए कि उसे अच्छी तरह देख लिया गया है| अरे इस घाटी के लोग घर-घर जाकर यह बात करते हैं कि डॉक्टर ने उन्हें टूटी लगाकर देखा है|

यह लोग स्टेटोस्कोप को टूटी बोलते हैं| मैं इसका प्रयोग न केवल उनके शरीरिक उपचार के लिए अपितु उनके मनोवैज्ञानिक उपचार के लिए भी करता हूँ| हैरानी की बात तो यह है कि मेरी इस टूटी वाली विधि से यह ठीक भी हो जाते हैं|” इतना कहकर डॉ पुनीत एक बार फिर जोरदार ठहाका लगाकर हँस दिए| पर इस बार वे अकेले नहीं उनकी हँसी में आनंद की हँसी भी शामिल थी| आनंद की सारी पढ़ाई-लिखाई, सचिवालय की राजनीति व तर्कशक्ति इस टूटी वाले डॉक्टर के आगे बोनी पड़ गई थी|

टूटी: रणजोध सिंह की कहानी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

बाल साहित्य उत्सव 2025 – हिमाचल सरकार और कीकली ट्रस्ट की साझेदारी में तीसरा संस्करण

➢ प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पट्टनायक, आर्टिस्ट प्रिया कुरियन और अभिनेता सोहैला कपूर शिरकत करेंगे➢ सभी बच्चों को खुला...

Karad Sets Sanitary Waste Management Benchmark in India

Sanitary waste management remains a major challenge across India, with improper disposal leading to environmental and health hazards....

NTTM Supports Indian Firefighting Gear Project

The National Technical Textile Mission (NTTM), an initiative by the Ministry of Textiles, Government of India, has supported...

Dr. Mandaviya Launches New ESIC Facility in Ranchi

Union Minister of Employment & Youth Affairs ,Dr. Mansukh Mandaviya, will inaugurate the newly developed 220-bedded ESIC Hospital...