डॉ. कमल के. प्यासा

नशा किसी भी प्रकार का क्यों न हो, होता घातक ही है और आखिर में इसके दुष्परिणाम ही निकलते हैं। यदि तंबाकू या इससे संबंधित अन्य पदार्थों को ध्यान से देखें, जिनमें कि सिगरेट, ई सिगरेट, पाइप, सिगार, बीड़ी, खैनी, जर्दा, गुटका, तंबाकू पान, सुपारी तंबाकू व नसवार जैसी कई हानिकारक चीजें आ जाती हैं जिनसे हमें कई प्रकार की घातक बीमारियां लग जाती हैं। तंबाकू में पाया जाने वाला सबसे घातक पदार्थ जिसे निकोटिन के नाम से जाना जाता है बहुत ही हानिकारक होता है (इसके साथ साथ अन्य हजारों प्रकार के रसायन रहते हैं ,जिनमें सैकड़ों जहरिले होते हैं)। 70 के करीब ऐसे रसायन भी रहते हैं जो कि कैंसर की कोशिकाओं का निर्माण करते है और शरीर में कई तरह की अन्य बीमारियां फैलाने में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। तंबाकू से होने वाले मुख्य रोगों में फेफड़ों, मुंह व पेट के कैंसर के साथ साथ निमोनिया, श्वास रोग (दम्मा), खांसी, रक्त, त्वचा, मस्तिष्क, बांझपन आदि के रोग हो जाते हैं। गर्भवती महिलाओं में तो कई बार समय से पूर्व ही प्रसव हो जाता है, कई बार पैदा हुए बच्चे का वजन बहुत ही कम होता है, कभी कभी मरा हुआ ही बच्चा जन्म ले लेता है, कई बार बच्चे को सांस लेने की समस्या पैदा हो जाती है, बच्चे के मध्य कान में संक्रमण हो सकता है, कभी कभी कटे होंठों वाला बच्चा भी पैदा हो सकता है आदि आदि।
तंबाकू के साथ चरस, गांजा व कोकीन आदि के प्रयोग से भी मानसिक रोग, रोग प्रतिरोधकता का कम होना, चिड़चिड़ापन होना, बेचैनी होना, मस्तिष्क में रक्तस्राव होना, नसों का फटना, पार्किसंस रोग व कभी कभी मस्तिष्क में डोपमाइन भी बन जाती है, जो कि मुक्त होने वाली कोशिकाओं के पुनचकरण को रोकती है।जिससे तांत्रिक कोशिकाओं के मध्य सामान्य संचार रुक जाता है।
धूम्रपान करने वाले की आयु वैसे भी आम लोगों की अपेक्षा 10 साल कम ही रहती है। एक सर्वेक्षण से ऐसा भी पता चला है कि 80 प्रतिशत लोग तम्बाकू की बीमारियों से ही मरते हैं। यदि साल भर में तंबाकू से मरने वालों की संख्या दुनिया भर की देखी जाए तो वह 6 मिलियन तक पहुंच जाती है। एक सर्वेक्षण के अनुसार ऐसा देखा गया है कि 35 से 68 वर्ष आयु वर्ग के, तंबाकू से मरने वाले 23.7 प्रतिशत अर्थात 5,27,500 पुरुष व 5.7 प्रतिशत अर्थात 83,000 महिलाएं आ जाती हैं।इसी तरह से तंबाकू की बीमारी से मरने वाले पुरुषों की संख्या 90 प्रतिशत व महिलाओं की संख्या 80 प्रतिशत आंकी गई है। ऐसा भी देखा गया है कि 40 प्रतिशत तपेदिक के रोगी तंबाकू के सेवन के कारण ही मरते हैं। तंबाकू की खेती करने वाले या तंबाकू के अन्य किसी तरह के व्यवसाय से जुड़े लोग, त्वचा रोग या त्वचा के माध्यम से उनके शरीर में ग्रीन तंबाकू नामक रोग की बीमारी लग जाती हैं। इस तरह तंबाकू की खेती भी हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है। क्योंकि तंबाकू की खेती से लेकर इसके उत्पादों, उनके वितरण, उपभोग व उपभोगता के पश्चात इसके तमाम अपशिष्ठ पदार्थ आदि मानव स्वास्थ्य, समाज व पर्यावरण को हानि ही पहुंचा रहे हैं। इसी लिए इस वर्ष, विश्व तंबाकू निषेध दिवस को विशेष रूप में मनाया जा रहा है। जिसमें ‘तंबाकू उद्योग के हस्ताक्षेप से बच्चों की रक्षा’ की थीम पर मनाया जा रहा है। जिसमें तंबाकू आदि नशीले पदार्थो का हमारे स्वास्थ्य, शरीर व पर्यावरण पर क्या क्या प्रभाव पड़ते हैं, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की इसमें क्या भूमिका है। दुनिया भर में आज इस विषय पर क्या क्या हो रहा है। पिछली बार ‘हमें भोजन चाहिए तंबाकू नहीं’ इसका थीम था। अब की बार बच्चों और युवाओं पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। WHO द्वारा यह कार्यक्रम वर्ष 1987 शुरू किया गया था और हर वर्ष इसका आयोजन विश्व भर में किया जाता है और आए वर्ष कुछ न कुछ बदलाव देखने को मिल ही जाता है। क्योंकि वर्ष 2022 में विश्व भर में 13 से 15 आयु वर्ग के 37 मिलियन युवा तंबाकू के उपयोग में संलिप्त थे, जिनमें यूरपीय क्षेत्रों में, 13 से 15 आयु वर्ग के 12.5 प्रतिशत लड़के व 10.1 प्रतिशत लड़कियां शामिल थीं। लेकिन अब तो बहुत कुछ बदल चुका है।
आओ हम सब मिल कर नशे के इन पदार्थों का बहिष्कार करके इन्हें जड़ से उखाड़ फैंके और मानव जीवन व स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही साथ अपने विश्व के पर्यावरण को भी बचा लें!