February 23, 2025

बेटी :डॉo कमल केo प्यासा द्वारा त्याग और सहनशीलता की कविता

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डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

बेटी
चूल्हा चौका
घर आंगन
भाई बहिन
सब देखती थी,
सियानी हुई
बेगानी इमानत
कह ,विधा हुई !
घर छूटा
छूटे सभी अपने
बिखर गए सपने
नए रिश्तों में
बेचारी जकड़ी गई !

बेटी
बनी दुल्हन
बहू कहलाई,
निभाती रही फर्ज़
सास ननंद को झेलती
घर बाहर(आंगन)
संभालती संवारती !
और बन पत्नी
पतिव्रता धर्म निभाती
भरी जवानी लूटा(अर्पित कर)
गृहस्थ की गाड़ी चलती
फिर न घबराई न घबराती !

बेटी
मां बनी
भूखी रहती
पेट काट काटअपना
औलाद का पेट रही भरती
फिर भी नहीं की,
न करती कोई
गिला शिकवा किसी से !

बेटी
का जब
बिखरा सिंधूर,
तिरस्कारी बहू बेटों ने
चौखट से बाहर
हुई खटिया,
क्योंकि खूं खूँ करने
लगी थी बुढ़िया !

बेटी
से छूटे
सभी अपने बेगाने,
गैर हुवे खून के रिश्ते
और तार तार हो के
बिखर गए सपने,
सूने सूने दिखने लगे थे
वो सभी घर
जो कभी थे अपने !

बेटी
ममता की मूरत,
बहू बेटे के यहां
नया मेहमान आने पर,
कहलाई दादी मां
अपने ही पौती पौते की,
फूली नहीं समाई तब !
पर किसे पता था
हंसी ठट्ठा करने लगे गे
कल के जन्में उसके
पौती पौता ही

डॉo कमल केo प्यासा द्वारा त्याग और सहनशीलता की कविता

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