रहते हैं संग मेरे वो यादों के खजानें
याद आते हैं वो अपने जो अब हो गए बेगाने
नहीं भूलते यादों में रहते हैं हरदम
मिले हुए उनसे हमें हो गए ज़माने
कभी न बिछुड़ने की खाई थी कसमें
झूठे सब निकले उनके वह तराने
बहुत ढूंढा उन्हें अब नज़र नहीं आते
बदल लिए हैं उन्होंने अब अपने ठिकाने
खुशबू का इक झोंका था जो पास से निकल गया
आये थे जो ज़िन्दगी की बगिया महकाने
मिले एक दिन तो मुंह फेर कर यूँ चल दिये
जैसे हमें जानते नहीं हम हों अनजाने
हम आज तक गा रहे हैं उन्हीं के तराने
जानते हैं हम जा चुके हैं वो किसी और का घर बसाने
आज भी अक्सर आ जाते हैं कुछ लोगों की ज़ुबान पर
हमारे और उनके प्यार के अफसाने
छुप छुप कर मिलते थे कभी
ढूंढते थे मिलने के बहाने
वो वादियां और फिजायें करती हैं याद अभी भी
जहां गाये थे कभी प्यार के मिल कर तराने
दिल मत दो यह हुस्नवाले नहीं होते किसी के
सच ही कहते हैं यह लोग पुराने
मोहब्बत का महल तोड़ कर चल देते हैं
उम्र छोटी पड़ जाती है जिसको बनाने
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(रवींद्र कुमार शर्मा का जन्म 20 सितंबर 1956 को हुआ। उन्होंने स्नातक शिक्षा प्राप्त की है और सिविल ड्राफ्ट्समैन में डिप्लोमा किया है। उनके 36 वर्षों का बैंकिंग अनुभव है और वे यूको ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। रवींद्र जी की रचनाएँ विभिन्न राष्ट्रीय पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रही हैं। उनकी दो काव्य संग्रह प्रकाशित हैं, “गुलदस्ते रे फुल्ल” (हिमाचली) और “कुसुमांजलि” (हिंदी)। वे कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित हो चुके हैं और वर्तमान में बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश में निवास करते हैं।)