
2 अक्टूबर का दिन जो कि विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है ,विश्व प्रसिद्ध दो विशेष विभूतियों से जुड़ा है। और ये विभूतियां हैं ,हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी व दूसरे देश के द्वितीय प्रधान मंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री जी। दोनों ही हस्तियों का संबंध जहां देश के स्वतंत्रता आंदोलन से रहा है ,वहीं दोनों ही लोकप्रिय , मानवतावादी, सत्य अहिंसा के पुजारी के साथ ही बिना किसी जाति वर्ग व रंग भेद के सब को साथ ले कर चलने वाले थे। इसी लिए 2 अक्टूबर की इस जयंती समारोह के अवसर पर दोनों को याद करते हुवे सभी अपने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते नहीं थकते।
यदि राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी की बात की जाए तो हमें पता चलता है कि उनका जन्म गुजरात के पोरबंदर नमक स्थान में, माता पुतली बाई व पिता कर्म चंद गांधी जी के यहां 2 अक्टूबर 1869 में हुआ था। महात्मा गांधी के पिता काठियावाड़ की रियासत पोरबंदर के दीवान थे। गांधी इनका पारिवारिक नाम था जिसका गुजराती में अर्थ पंसारी होता है। गांधी जी पर अपनी माता के संस्कारों का प्रत्यक्ष प्रभाव था।
उनकी माता पुतली बाई जैन परंपराओं ,पूजा पाठ व शाकाहार खानपान में विशेष विश्वास रखती थीं।जिसका प्रभाव गांधी जी पर भी पड़ा था और वह भी हमेशा निर्बलों की मदद , सत्य अहिंसा का पालन,शाकाहारी भोजन व जाति पाती के विचारों से दूर रह कर सादे जीवन में रहना ही उचित समझते थे। जब महात्मा गांधी जी केवल साढ़े तेरह बरस के ही थे तो उनकी शादी कस्तूरबा बाई से वर्ष 1883 के मई मास में करा दी थी। वर्ष 1885 में जब केवल 15 बरस के ही थे तो उनकी पहली संतान हुई लेकिन वह बच नहीं पाई,कुछ दिनों के पश्चात उनके पिता कर्म चंद गांधी भी चल बसे थे।बाद में गांधी जी के चार बेटे हुवे थे।गांधी जी अपनी आठवीं तक की शिक्षा पोरबंदर से व दसवीं राजकोट से करने के पश्चात भावनगर कॉलेज में ही दाखिल हो गए थे और फिर कानून की शिक्षा ग्रहण करने के लिए 4 दिसंबर 1888 को यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के लिए इंग्लैंड पहुंच गए थे।
बाद में इंग्लैंड से वापिस पहुंच कर बंबई में कुछ दिन वकालत का काम करने लगे ,लेकिन सफल न होने के कारण उन्होंने गरीब लोगों की मदद करके व उनके प्रार्थन पत्र(अर्जियां)लिख कर सहायता करते रहे। लेकिन शीघ्र ही उन्हें अंग्रेजों के कारण राजकोट छोड़ना पड़ गया और 1893 में वकालत के लिए दक्षिण अफ्रीका के नेटाल पहुंच गए। दक्षिण अफ्रीका में भी अंग्रेजों का व्यवहार प्रवासी भारतीयों के साथ ठीक नहीं था ।भारतीयों और अफ्रीका के मूल निवासियों को उधर बड़ी ही हीन भावना से देखा जाता था।एक बार गांधी जी प्रथम श्रेणी के टिकट के साथ रेल में सफर कर रहे थे तो उन्हें धक्के मार कर नीचे उतार दिया था। भारतीयों को बड़े बड़े होटलों व रेस्टोरेंट में जाने का प्रतिबंध था।एक बार तो गांधी जी को वहां के न्यायधीश ने पगड़ी उतारने तक को कह दिया था।
इतना ही नहीं भारतीयों को सेना में ऊंचे पद्दों पर नहीं लगाया जाता था। इस पर उन्होंने एक प्रवासी वकील के रूप में सर्वप्रथम दक्षिणी अफ्रीका में भारतीय समुदाय के लोगों के ,नागरिक अधिकारों व भेद भाव के लिए संघर्ष के साथ सत्याग्रह किया था।दक्षिणी अफ्रीका में अंग्रेजो के विरुद्ध सत्याग्रह द्वारा प्रदर्शन गांधी जी द्वारा 1914 तक ,जब तक वहां रहे चलता रहा। वर्ष 1915 में जब गांधी जी भारत लोट आए तो यहां पर भी उन्होंने किसानों,श्रमिकों व आम लोगों की समस्याओं तथा भूमि कर में भेद भाव को देख कर अंग्रेजों के विरुद्ध बड़े ही अहिंसक तरीके से आवाज उठाते रहे। 1918 में चंपारण व खेड़ा में नील की खेती के लिए सत्याग्रह करने पर उन्हें जेल में भी डाल दिया था ,लेकिन शीघ्र ही रिहाई भी कर दी थी।
वर्ष 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बागडोर संभालने के पश्चात ही गांधी जी ने महिला अधिकारों,दरिद्रता मुक्ति,धार्मिक नीतियों, आत्मनिर्भरता व अस्पर्शता आदि के विरुद्ध कार्यक्रम चलाने शुरू कर दिए थे।वर्ष 1922 में उनके द्वारा चलाया असहयोग आन्दोलन हिंसा के डर के कारण उन्होंने खुद ही वापिस ले लिया था,लेकिन गांधी जी को फिर भी पकड़ लिया गया था और 10 मार्च 1922 को उन पर राजद्रोह का अभियोग लगा कर 6 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी,लेकिन गांधी जी के बीमार हो जाने के कारण उन्हें दो साल बाद 1924 में छोड़ दिया गया था।
वर्ष 1930 में अंग्रेज सरकार द्वारा नमक पर टैक्स लगाने के विरुद्ध, गांधी जी ने सत्याग्रह करते हुवे डांडी यात्रा का आयोजन करके अग्रेजों को हिला कर रख दिया था ,जब कि लगभग 400 किलोमीटर (अहमदाबाद से डांडी तक)की उस यात्रा में हजारों लोगों ने भाग लिया था। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन चला कर भी गांधी जी कई बार जेल गए लेकिन उनकी सत्य और अहिंसा का पालन की नीति कभी भी डगमगाई नहीं।सामरमती आश्रम के सादे जीवन में सूती धोती ,शाल,चरखे की कताई व सदा भोजन ही हमेशा उनके साथ बने रहे।तभी तो 1915 में ही उन्हें राज वैद्य जीव राम काली दास ने महात्मा कह कर संबोधित किया था।स्वामी श्रद्धानंद जी ने भी यही शब्द गांधी जी के लिए कहे थे।जब कि नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने वर्ष 1944 की 6जुलाई को गांधी जी के लिए राष्ट्र पिता के नाम से (रंगून रेडियो से) संबोधित करते हुवे शुभकामनाएं मांगी थीं।
आखिर भारत के वीर सपूतों,क्रांतिकारियों,असंख्य शहीदों की कुर्बानियों के साथ सत्य अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी जी 15 अगस्त 1947 को देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करवा कर ही रहे। लेकिन स्वतंत्रता के शीघ्र बाद ही 30 जनवरी 1948 को नाथू राम गोडसे ने महात्मा गांधी पर गोली चला कर उन्हें जान से मार डाला।बापू गांधी हे राम के उच्चारण के साथ ,,,,,सबको छोड़ कर सदा सदा के लिए चले गए।