रणजोध सिंह
बेशक तुम आज़ाद
हवाओं में साँस लेते हो|
मन चाहा खाते हो
मन चाहा पीते हो|
नहीं गुलाम
किसी तानाशाह के
लोकतंत्र की छांव में
अपनी मर्जी से जीते हो|
मगर याद रखना ऐ दोस्त
यहाँ कुछ भी चीज़ मुफ्त नहीं मिलती|
बिन मोल चुकाए यहाँ
ख़ुश्क आँखों में
नमी तक न मिलती|
किसी परी ने
गवाई होगी अपने पापा की गोद|
किसी बेटे ने खोया होगा
अपने पापा का स्न्हेहिल आमोद|
किसी बहन का टुटा होगा
राखी का सपना|
किसी सुहागिन ने
खोया होगा करवा चौथ अपना|
किसी यशोदा का कान्हा
लिपट तरंगे में आया होगा|
और किसी पिता ने पुत्र की
अर्थी को कांधा दिया होगा|
जब हम घोड़े बेच
चैन की नींद सोते हैं|
कुछ लोग कड़कती सर्दी में
सरहद पर पहरा देते हैं|
लेते है लोहा शत्रु से
एक क्षण में प्राण गवा देते है|
झुकने नहीं देते शीश देश का
शीश अपना कटवा देते हैं|