फायदा: लघुकथा

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रणजोध सिंह

रणजोध सिंह

विमल के पिताश्री का स्वर्गवास हुए कुछ ही दिन हुए थे मगर न चाहते हुए भी विमल को सपरिवार एक पारिवारिक समारोह में शामिल होना पड़ा। शायद मृत्यु लोक में जीना-मरना, हँसना-खेलना, सुख-दुःख सब साथ-साथ चलता है और विमल भी इसका अपवाद नहीं था। चूंकि माताजी और पिताजी में घनिष्ठ प्रेम था, इसलिए पिता जी के जाने का सबसे ज्यादा दुख भी माता जी को ही हुआ था। उस दिन भी उन्हीं का मन बदलने के लिए यह यात्रा की जा रही थी। विमल के पिता जी सदैव फ्रंट सीट पर बैठा करते थे तथा ड्राइविंग सीट पर विमल स्वयं। उनकी धर्मपत्नी, पुत्रवधू, तथा पौत्र-पौत्री किसी तरह बैक सीट पर एडजस्ट हो जाते थे। मगर पिता जी के जाने के बाद भी सभी लोग स्वत: ही अपने-अपने निर्धारित स्थान पर बैठ गए थे मगर उनका सात वर्षीय पौत्र जिद करके फ्रंट सीट पर बैठ गया था। यात्रा में सभी लोग दिवंगत आत्मा के गुणों का बढ़-चढ़कर व्याख्यान कर रहे थे और अपने-अपने ढंग से उनके आकस्मिक निधन से होने वाले नुक्सान का आंकलन कर दुखी हो रहे थे। इस बीच पौत्र खुशी से चहकते हुए बोला, “यूं तो दादाजी के जाने का मुझे भी दुख है मगर उनके जाने का मुझे एक फायदा भी हुआ है मुझे फ्रंट सीट मिल गई जो दादाजी मुझे कभी नहीं देते।” बच्चे के चेहरे पर ख़ुशी के फूल खिल रहे थे और विमल के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी थी।

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