डॉo जय महलवाल
डॉo जय महलवाल

एड़ी हुई बरखा मार्च महीने,
ठंडी ने दबारा छुटी गई दनदली,
एनी लगे पौणे गर्मियां आले पसीने,
कोट कडाईते परमात्मे पीं ते,

चली तुफाना री एड़ी सनसनी।
डाल बी ढली गए,
रूड़ी गयियाँ फसलां नमानियां,
खुश हुई गए सारे बरखा ते पर,
फसला रे नुकसाना रियाँ कहानियां किसजो
सुनानियां।

हुई गए खुश लोक देखी के बरखा रियां फुहारां,
गर्मियां ते थोड़ी ठंड पई चलियां एड़ियां हवावां,
धरतिया रे डाल बी लगे झूलदे ,
हूण टहनियां खुशियां ने अपू बिच टकरावां।

कोट कडायिते: डॉo जय महलवाल

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