हर्षिता दावर

हर दिवाली से पहले एक कबाड़ी ऐसा भी आना चाहिए जो टूटे फूटे दिल और फटी पुरानी यादें ले जाएं
कुछ दिल का बोझ हल्का कर जाएं
कुछ मिट्टी में सनी यादों की डायरी ले जाए
कुछ काई लगी गसीटे गले रिश्तों की गठरी ले जाए
कुछ टूटी तरवीरों के बेनाम टुकड़ों ले जाए
कुछ कीचड़ से सने ताने जो उछाले वो ले जाए
कुछ दिन पहले ही शुरू से खत्म वाली कहानी ले जाए
कुछ लोग की गंदी सोच ले जाए
बदले में बस सुनहरी धूप दे जाए
कुछ रूह जो क़ैद हुए उसे रिहाई दे जाए
कुछ पुरानी गलियों की बचपन वाली मुस्कुराहट दे जाए
कुछ बचे दिन में नए पन का आशीर्वाद दे जाए
कुछ नामुमकिन नहीं ये इरादा दे जाए
एक छोटा आसमान मेरा हो बस यहीं मेरे नाम कर जाए
दिवाली की शुरुवात मन के टूटे मनके पुरानी सोच से बदलकर सफ़ाई से पहले ख़ुद को नया रूप दिया जाए……
क्या कहते है आप?……
जज़्बात ए हर्षिता

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