वह हँसती क्यों है: रणजोध सिंह की लघुकथा
रणजोध सिंह

हर समय खिल-खिलाने वाली नंदिनी के बारे में कॉलोनी के लोग इतना ही जानते थे कि वह एक निजी कम्पनी में काम करती है और अकेली रहती है| वह न केवल देखने में सुंदर थी, अपितु उसका मन भी उतना ही सुंदर था| इसीलिए कॉलोनी में रहने वाले हर व्यक्ति की चहेती थी| कॉलोनी के बच्चे तो उसकी एक झलक पाने को सदैव तत्पर रहते और वह भी उन्हें भरपूर प्यार, सम्मान और स्नेह देने में कोई कंजूसी न करती थी | मगर कॉलोनी की अधिकांश स्त्रियों को नंदिनी से ढेरों शिकायते थीं|

जैसे वह सदैव हँसती क्यों रहती है, वह उनकी तरह दुखी क्यों नहीं होती, उनके लाडलें उनकी बात न सुनकर उसकी बात ही क्यों सुनते हैं और उनके पति गाहे वगाहे नंदिनी की तारीफ क्यों करते हैं? आदि-इत्यादि एक गर्म दोपहरी में जब सारी कॉलोनी नींद की आगोश में समाई हुई थी, नंदिनी अपने घर के आंगन में पूरी दुनिया से बेखबर, बच्चों के साथ बच्चा बन खेल रही थी| तभी एक अंधेड उम्र की महिला जो नंदिनी के पड़ोस में ही रहती थी, जिसके जीवन का एक मात्र मकसद अपने पति से लड़ना-झगड़ना था, दनदनाती हुई वहां पहुँच गई और लगभग डांटते हुए बोली, “इतना शोर क्यों मचा रखा है?

अरी ! ये तो बच्चे हैं, तुम तो बड़ी हो क्या तुम्हें मालूम नहीं, ये लोगों के आराम करने का वक्त है?” वह थोड़ी देर रुकी फिर अपनी नसीहतों के तरकश से एक के बाद एक व्यंग्य बाण निकाल कर नंदिनी पर छोड़ दिये, “अरी ! कब तक दूसरों के बच्चों के साथ मन बहलाती रहोगी, कुछ अपने बारे में भी सोच, तुम्हारी उम्र में मैं दो बच्चों की माँ बन गई थी|” नंदिनी चीख कर कहना चाहती थी, “मेरे पापा इस दुनिया को छोड़कर चले गए हैं परन्तु गाँव में मेरी माँ है, दो बहनें हैं और एक छोटा भाई है, जिनकी परवरिश का जिम्मा मेरे कंधों पर है|

अगर मैं शादी करके बच्चों के सपने देखुगी तो मेरे परिवार का क्या होगा|” मगर उसके मुँह से एक शब्द तक न निकला, क्योंकि वह जानती थी की ज़माना दर्द देना तो जानता है पर बांटना नहीं| इस बीच दो मोती आकर उसकी पलकों पर ठहर गए थे जिन्हें सहेजने वाला कोई न था| अपने तमाम दर्द को सीने में छुपाकर नंदिनी अब भी बच्चों के संग खेल रही थी|

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