कटे फटे काले काले,
मैले कुचैले
नन्हें नन्हें हाथ !
पेट की खातिर जीते
पेट की खातिर मरते।
जिधर चाहो लग जाते,
गंदगी,मैला,गंध _ दुर्गंध
सब कुछ भुला के
खुद देह तड़पाते
और फर्ज खूब निभाते हाथ !
पौ फटते ही
इधर से उधर
नदी नालों के पार
बींधते कूड़ा कचरा ,
और हो जाते निहाल
मैले कुचैले काले काले
नन्हें नन्हें हाथ
कभी खान खदानों में
झब्बाल फावड़ा चला के
खून और पसीना बहा के
नहीं थके कभी भी
ये नन्हें नन्हें
कटे फटे काले काले हाथ !
हाथ बनाते आतिश बाजी,
बम गोला और बारूद
कभी विस्फोटों _धमाकों में
खून और लोथड़े के संग
दूर दूर तक बिखर जाते ,
नन्हें नन्हें प्रयत्नशील काले काले कभी न घबराने वाले हाथ !
हाथ पत्थर तोड़ते
पत्थर फोड़ते
मिट्टी गारा , चूना पौतते हीरे मोती भी चमकाते
अपनी आभा खोते जाते,
किसी के आगे नहीं फैलते
बस सिकुड़ के रहते मैंहती हाथ !
है कैसी विडंबना
कैसा उपहास
उम्रभर ,खेलने वाले
मैले मिट्टी _गारे से,
वही दाने दाने को तरसते देखे
मैले कुचैले काले काले हाथ !
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