शहर के टालैंड स्थित बस स्टॉप पर रेन शेल्टर में भीषण ठंड में एक मनोरोगी बुजुर्ग बेसहारा हालत में रात गुजर रहा है। उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने शिमला के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर मांग की है कि उसे मेंटल हेल्थ केयर एक्ट 2017 के अंतर्गत रेस्क्यू किया जाए। ऐसा न करने पर बुजुर्ग की जान खतरे में पड़ सकती है।

उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के दो फैसलों में भी बेसहारा मनोरोगियों को इस कानून के अंतर्गत रेस्क्यू करने का दायित्व जिला पुलिस अधीक्षकों को दिया गया है। उन्होंने कहा कि 2017 के कानून के अनुसार सड़क पर बेसहारा स्थिति में रहने वाले किसी भी मनोरोगी को पुलिस जानकारी मिलने पर अपने संरक्षण में लेगी। इसके बाद उसे किसी नजदीकी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया जाएगा। यदि डॉक्टर को उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं लगती है तो उसके आधार पर मनोरोगी को न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास पेश किया जाएगा।
न्यायिक मजिस्ट्रेट बाकायदा आदेश पारित करके उसे ऐसे नजदीकी अस्पताल में भेजेगा जहां मनोचिकित्सक उपलब्ध हो। मजिस्ट्रेट के आदेश पर उसे मुफ्त दवा इलाज और भर्ती रहने की सुविधा देना अस्पताल की जिम्मेवारी है। उन्होंने कहा कि यह मनोरोगी बुजुर्ग स्वयं को पानीपत का रहने वाला बताता है। वह कहता है कि किसी काम से यहां आया है। कुछ और पूछने पर बार-बार कहता है कि मुझे भूख लगी है कुछ खाने को दे दो। कुछ संवेदनशील लोगों ने उसे कंबल दिए हैं। प्रो. अजय श्रीवास्तव ने पुलिस अधीक्षक से कानून के मुताबिक तुरंत इस मनोरोगी बुजुर्ग को रेस्क्यू करने की मांग की है। उनके अनुसार पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी ने कानून के मुताबिक कार्रवाई का आश्वासन दिया है।