भीम सिंह, गांव देहरा हटवाड़, जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश ।

हम दो यार थे
मित्र सदाबहार थे
फौज में इकट्ठे आए थे
हँसते खेलते दिन बताये थे
जब मैं छुट्टी घर आता था
दोस्त के घर जरूर जाता था
यही सबकुछ
मेरा दोस्त भी दोहराता था
जब कारगिल में लगी लड़ाई
सरकार ने वहां हमारी भी डयूटी लगाई
हमने तुरन्त मोर्चा संभाला
बन्दूक की गोलियों से दुश्मन को ललकारा
दोनों तरफ से गोलियां दनादन चलने लगी
किसी को मौत की नींद सुलाने लगी
किसी को बुरी तरह घायल करने लगी
एक गोली मेरे दोस्त से भी आ टकराई
जिसे देख मेरी आँखें भर आई
वह थोड़ी देर तड़पा
फिर मौत की गहरी नींद सो गया
इस तरह मेरा दोस्त मुझसे बिछुड़ गया और कहीं ब्रह्मांड में खो गया
वह जब तक जिन्दा रहा
बड़ी बहादुरी से लड़ा
इस देश के दुश्मनों पर बहुत भारी पड़ा
आज मैं उसकी यादो पर रो जाता हूँ
अपने को बहुत-बहुत अकेला पाता हूँ ।

 

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