डॉ. कमल के. प्यासा, समखेतर, मण्डी
माँ अम्मा अम्मी मम्मी या कह लो मॉम,
माता मैया माई या कह लो माऊ !
हर शब्द में छिपी है ममता तेरी माँ,
तुम्हें किस नाम से पुकारु मेरी माँ !
तेरे आंचल में मिलती राहत,
मिलता सकून और चैन है माँ !
तेरा आंचल कैसा भी हो,
मैला कुचैला पैबंद लगा !
रहती है ममता की छांव,
हरदम तेरे आंचल में माँ !
दौड़ती रहती दिन भर छाया बन,
मेरे आगे और पीछे पीछे !
रात रात अनिद्रा रह कर भी,
मुझे प्यार स्नेह से सहलाती रहती माँ !
वक्त बेवक्त मल मूत्र सब धोती,
कभी भी नहीं कतराती माँ !
सूखे में हमेशा सुला कर मुझको,
खुद गीले में सो जाती माँ !
जब जब सुनती आहट मेरी,
तो जल्दी से दौड़ी आती माँ !
अचानक नीद मेरी खुल जाने पर,
प्यारी लोरी सुना, सुला जाती माँ !
हुआ पाठशाला जाने के काबिल तो,
सुबह सवेरे उठा प्यार से नहलाती माँ !
फिर डाल किताबें सब बस्ते में,
मुझे विद्यालय की राह दिखाती माँ !
करती रहती इंतजार घर आने का,
तब गर्मा गर्म खाना खूब खिलाती माँ !
माँ का दिल तो कोमल ही रहता,
तभी तो बच्चो को सीने से लगाए,
रहती माँ !