डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के. प्यासा

नदी हूं मैं
मुझे बस स्वछंद ही
बहने दो,
मस्ती में इधर उधर
खूब मचलने दो,
जन जन की प्यास
बुझाने दो,
मत रोको
जैसे तैसे बस जाने दो !

बांधने पर मैं
कैसे आगे बढ़ पाऊं गी
वरना क्रांति के गीत(भगत सिंह की तरह)
मैं भी गाऊं गी,
बिखर जाऊं गी,
जाने दो मुझे जाने दो
वरना वेग में विराम आने से
संचय ऊर्जा बड़ जाए गी !

न जाने फिर प्रलय बन
कैसे कैसे कहर ढाए गी
जड़ और चेतन भेद रहित
बस्तियों के संग संग
सब को साथ ले जाए गी,
इसी लिए कहती हूं
न छेड़ो न खेलो मुझ से,
चट्टाने पत्थर (अवरोध)जैसे हैं
उन्हें वैसे ही रहने दो
बस रहने दो और
मुझे बहने दो बहने दो !

नहीं तो ले जाऊं गी,
बह ले जाऊं गी
समस्त उर्वरता और
खनिज कण कण भी
नदी हूं मैं
मुझे बस स्वछंद ही
बहने दो !
मस्ती में खूब मचलने दो
जन जन की प्यास बुझाने दो।

नदी: डॉ. कमल के. प्यासा

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