भोले शिव की शिवरात्रि: डॉo कमल केo प्यासा
त्यौहार कोई भी क्यों न हो ,उसकी प्रतीक्षा तो रहती ही है और फिर कई कई दिन पहले ही त्यौहार को मनाने की तैयारियां...
चम्मचे (चम्मचों की कारगुजारी): डॉo कमल केo प्यासा
चापलुसियो की ही खाते हैं चम्मचे !चम्मचागिरी मेंअव्वल होते हैंचम्मचे!दुवा सलाम करते नहीं थकते चम्मचे!कभी रूठ जाते कभी मान जाते हैंचम्मचे !फिर भी चिपके...
समस्या: डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासाये समस्या है ,सब को ठन रही हैसमझता है हर कोईउलझन बड़ रही है,सिसकता रोताआंसू बहता ,बेचारा...
प्यारी मम्मी: डॉo कमल केo प्यासा
मम्मी _मम्मी मेरी प्यारी मम्मीकब नानी के घर जाओगी ?माल_पूड़ा और दाल कचौड़ीक्या इस बार नहीं बनाओगी ?मम्मी मम्मी मेरी प्यारी मम्मीकब नानी के...
दीवारें: डॉo कमल केo प्यासा
दीवारेंछोटी बड़ीमोटी पतलीइधर उधरऊंची नीचीयहां वहांकहीं भी दिखती होंदीवारेंबंटती हैंकाटती हैंजुदा करती हैंअपनों को अपनों से !दीवारेंऊंची नीचीनाटी हल्कीकच्ची पक्कीमिट्टी गारेबल्लू सीमेंट कीकैसी भी...
पैंतरा: डॉo कमल केo प्यासा की एक कविता
मौसम ने लीकरवट,गिरगिट ने रंगबदले !थाली के बैंगनबेपैंदे लोटे,सब लुढ़के,लुढ़कने लगे !छुट पुट बादलछटं गए सब,अंगड़ाई ली फिरमौसम ने !नहीं बदले गाक्या फिर कल...