पैंतरा: डॉo कमल केo प्यासा की एक कविता
मौसम ने लीकरवट,गिरगिट ने रंगबदले !थाली के बैंगनबेपैंदे लोटे,सब लुढ़के,लुढ़कने लगे !छुट पुट बादलछटं गए सब,अंगड़ाई ली फिरमौसम ने !नहीं बदले गाक्या फिर कल...
यादों के झरोखों में कुछ उलझी यादें: डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासादूर सूर्य अपना चक्कर पूरा करने के लिए क्षितिज की फैली बाहों की ओर अग्रसर हो रहा...
कुत्ते: शहर, गांव और गलियों के कुत्तों पर डॉo कमल केo प्यासा के विचार
कुत्तेशहर के, गांव के कस्बे केचाहे हो गली या कूचे के,कुत्ते तो कुत्ते ही होते हैं,दुम हिलाते हैं,पास आते हैं,टुकड़ा पाते हीलाड दिखाते हैं,जैसा...
बेटी :डॉo कमल केo प्यासा द्वारा त्याग और सहनशीलता की कविता
बेटीचूल्हा चौकाघर आंगनभाई बहिनसब देखती थी,सियानी हुईबेगानी इमानतकह ,विधा हुई !घर छूटाछूटे सभी अपनेबिखर गए सपनेनए रिश्तों मेंबेचारी जकड़ी गई !बेटीबनी दुल्हनबहू कहलाई,निभाती रही...
बेचारा हीरू: डॉo कमल केo प्यासा
बादल फटने के साथ आई बाढ़ भारी मलबे व भूस्खलन ने बेचारे हीरू के घर परिवार का नमो निशान ही मिटा दिया था। परिवार...
नदी: डॉo कमल केo प्यासा
शांत गहर गंभीरसमाई सी गहराई लिएशीतल निर्मल जल के संगउद्गम से निकलबह जाती हैमंद मंद गति से !नदीपहाड़ों से उतरतीचीरती सीना चट्टानों काडरावनी (रौद्र)...