डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

मौसम ने ली
करवट,
गिरगिट ने रंग
बदले !
थाली के बैंगन
बेपैंदे लोटे,
सब लुढ़के,लुढ़कने लगे !

छुट पुट बादल
छटं गए सब,
अंगड़ाई ली फिर
मौसम ने !
नहीं बदले गा
क्या फिर कल ?
नहीं है कोई
आशंका अब ।

आसमान तो साफ है
पूरे का पूरा अभी
हां,किसी ने जाल
जरूर पसारा है !
जोड़ तोड़ समझौते
और मजमून नए
मैनफेस्टोस के
आम चर्चा बने हैं !

विकास शिक्षा गरीबी उन्मूलन
बेकारी मंहगाई और भ्रष्टाचार की
फिर से लेने लगे दुहाई है !
बजने लगे हैं
फिर से भौंपू,
गली हाट बाजारों में।
गिरावट के बाद
उछाल आए गा देखना
आम चीजों के भाव में !

दिल खोल कर
चढ़े गे चढ़ावे
बड़े बड़े देवताओं
के चरणों में।
बरसे गे फूल
और हार पड़ेंगे
आम जन के सामने।

चढ़ावा चड़त का
कई गुणा बन
वापिस मिल जाए गा
देव भगत श्रद्धालुओंको !
मौसम ले लेगा
खुद ही करवट और
पैंतरा खा बदल जाए गा !

पैंतरा: डॉo कमल केo प्यासा की एक कविता

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