तुम कहां चले गए, याद बहुत आती है: डॉo कमल केo प्यासा
क्या कहूं कैसे कहूं किसे बताऊं कैसे बताऊं अंदर की बात तुम थे कुछ खास तुम ही याद आए !किसे बताऊं किसे सुनाऊं...
नारी: मानविका चौहान का एक अद्भुत साक्षात्कार
सहमी आज क्यों यह नारी है,क्यों बन गई वह एक बेचारी है।कौन-सा अपराध करा उसने जन्म लेकर,यह तो दुनिया दुराचारी है।आज क्यों गृहस्थी में...
नदी: डॉ. कमल के. प्यासा
नदी हूं मैंमुझे बस स्वछंद हीबहने दो,मस्ती में इधर उधरखूब मचलने दो,जन जन की प्यास बुझाने दो,मत रोकोजैसे तैसे बस जाने दो...
एक पहचाण: डॉo कमल केo प्यासा
हाऊं,कुण हाकैथी हाकियांहा हामुंझो किछ भी तथोग पत्ता नी !मेरी पक्की परख पहचाण ,हाडकुआ री कोठरुआ मंज बंदएक जियुंदा हांडदा टपदाजगह जगह थुड खांदामाणु...
पैंतरा: डॉo कमल केo प्यासा की एक कविता
मौसम ने लीकरवट,गिरगिट ने रंगबदले !थाली के बैंगनबेपैंदे लोटे,सब लुढ़के,लुढ़कने लगे !छुट पुट बादलछटं गए सब,अंगड़ाई ली फिरमौसम ने !नहीं बदले गाक्या फिर कल...
अपनी बोली अपनी पछ्यान: डॉक्टर जय अनजान
जिथी नी ओ कोई पुछ पछ्यान,ऊथी नी देने चैंदे ज्यादा प्राण,से जे करो सारे अपणा ही गुणगान,तिसरे पाओ जुकी जुकी ने बछ्यान।जेड़ा चलाओ अपणा...